शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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(रचना शिल्प: वार्णिक छंद ८८८७-३१)
श्याम की दीवानी हुई,
प्रेम की कहानी हुई,
पैरों में घुँघरू बाँध,
नाचती ही जाये है।
कान्हा जाये मिल गर,
फिर नहीं कोई डर,
मेवाड़ की राणी मीरा,
जोगन हो जाये है।
बाँसुरी की धुन पे वो,
बावरी-सी झूम उठे,
हाथ खड़ताल लिये,
साँवरा मनाये है।
अच्छा-बुरा जाने नहीं,
किसी की भी माने नहीं,
मोहन का नाम ले के,
जहर पी जाये है।
प्रेम में पागल होय,
अपनी ही सुधि खोय,
शिष्या रविदास की वो,
मन को लुभाये है।
मन हर लियो श्याम,
भूल गई नाम काम,
श्याम रंग चूनर में,
कृष्ण को रिझायो है।
मेड़ते को छोड़ मीरा,
पुष्कर नहाने चली,
धूम मची गली-गली,
श्याम पद गाये है।
देख के दीवानापन,
भजन में हो मगन,
सुध-बुध खो ‘शंकर’,
पद ये बनायो है।
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।