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सकारात्मक भावना को बढ़ावा देती है फेरी

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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सभी जानते हैं कि प्रभात फेरी में प्रभात से मतलब सुबह ४ बजे के बाद वाला समय, जबकि फेरी का तात्पर्य आसपास घूमना… । इसलिए प्रभात फेरी वह है जब सुबह के समय कुछ लोग एकत्रित होकर अपने आसपास के इलाके में घूमते हुए थोड़ी ऊँची आवाज में कुछ सकारात्मक संदेश देने का प्रयास करते हैं। आपने भी देखा होगा कि स्वच्छता का संदेश,जल संरक्षण का संदेश आदि के लिए प्रभात फेरी का आयोजन होता रहता है,लेकिन जब सबेरे-सबेरे पौ फटने के साथ ही राधे गोविन्द,गोविन्द ​गोविंद,हरे राम हरे राम,हरे कृष्ण हरे कृष्ण, श्रीमन् नारायण नारायण,जय जयश्री राम, जय जय सियाराम गूँजाते हुए या सुमधुर आवाज में ढोल-मंजीरों के साथ,छम छमियाँ बजाते,भजन कीर्तन करते हुए मोहल्लों के चक्कर लगाते हैं,तब इसे धार्मिक प्रभात फेरी कहते हैं। धार्मिक प्रभात फेरी को लेकर भाग लेने वालों में प्रतिबद्धता इस कदर होती है कि सर्दी हो या गर्मी,बारिश हो या भीषण ठंड,कभी बाधित नहीं होने देते,क्योंकि इसमें भाग लेने वालों का मानना होता है कि भजन-कीर्तन व भक्ति भाव के चलते एकता व मैत्री तो विकसित होती ही है,साथ ही ताजी हवा मन,मस्तिष्क व शरीर को स्वस्थ रखने का स्वतः ही एक जरिया बन जाती है। धार्मिक प्रभात फेरी के माध्यम से शामिल लोग अनेक सकारात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर भी पूरा ध्यान रखते हैं,जिसमें शामिल है अपने मित्रों को आलस्य त्याग नित्यकर्म में लगाना,बच्चों को सुबह उठकर पढ़ने के लिए प्रेरित करने के अलावा उन माताओं,बहनों और लोगों को सुबह-सुबह ही भगवान का स्मरण करवा देना,जो किसी कारणवश पूजा-अर्चना नहीं कर पाते। पौराणिक कथाओं एवं शास्त्रों से ज्ञात होता है कि प्रभात फेरी कृतयुग(हम सतयुग के नाम से जानते हैं)के समय से चली आ रही है। सतयुग में जब प्रभु विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का पेट चीर कर उसे मार अपने भक्त प्रह्लाद की जान की रक्षा करने के पश्चात उससे अर्थात प्रह्लादजी से कहा कि,आप मेरे साथ बैकुण्ठ चलो। तब प्रह्लादजी ने कहा कि प्रभु मैं स्वार्थी भक्त नहीं हूँ। मेरे जो यहाँ जो भी बंधु-बाँधव हैं वो यहाँ कष्ट पाते रहें और मैं अकेला बैकुण्ठ चलूँ -ये मुझे अच्छा नहीं लगता है। मेरा मन है कि,मैं इन सबको बैकुण्ठ ले कर आऊँ।
यह सुन प्रभु ने कहा कि,बैकुण्ठ कोई मेला तो है नहीं कि सबको ले कर चल पड़े। वहाँ ऐसे तो ये नहीं आ पाएंगे। इनको तुम कैसे लेकर आओगे ?
तब भक्त प्रह्लाद ने प्रभु से कहा कि आपके नाम की महिमा से इनको लेकर आऊँगा।
यह सुन प्रभु ने कहा कि तुम्हारे पिताजी ने ऐसे-ऐसे भारी प्रतिबंध लगाए थे,जिसके चलते इन लोगों में से किसी ने कभी भी नाम लिया ही नहीं है। इस हालत में अब ये सब कैसे वहाँ आएंगे ?
तब प्रह्लादजी ने कहा कि,मैं इन सबसे प्रार्थना करूंगा कि हरी नाम लो,हरी नाम लो।
यह सुन फिर प्रभु ने कहा कि यदि इन्होनें नहीं लिया तो!
फिर भक्त प्रह्लाद ने प्रभु को बताया कि यदि इन्होंने मेरे निवेदन पश्चात भी नाम नहीं लिया तो मेरे पास दूसरा उपाय भी है।
यह उत्तर सुन प्रभु ने पूछ बैठे,दूसरा उपाय क्या है ?
प्रह्लादजी ने कहा कि मैं रोज सुबह उठ कर के अपने नगर में घूम-घूम कर जोर-जोर से आपका नाम लूँगा-नारायण-नारायण, गोविंद-गोविंद,गोपाल-गोपाल।
तब प्रभु ने जानना चाहा कि,उससे क्या होगा ?
प्रह्लादजी ने उन्हें बताया कि उससे मेरे नगर के लोग ये सोच के कि हमारे राजा को क्या हो गया है,जो ये नाम ले के चिल्लाते हुए घूम रहे हैं,तो सब लोग घरों से निकाल कर बाहर आएंगे यह देखने के लिए कि मुझे क्या हो गया है। तो वो आँखों से तो मुझे देखेंगे,पर कानों के रास्ते आपका नाम उनके अन्दर चला जाएगा। एक-दो दिन पश्चात अवश्य ही कुछ लोग मेरे साथ इसमें शामिल भी होंगे और धीरे धीरे वह संख्या बढ़ती चली जाएगी। इस तरह उनके कल्याण का रास्ता खुल जाएगा,बैकुण्ठ के दरवाजे खुल जाएंगे। प्रभात फेरी की शुरुआत इस तरह विष्णु भक्त प्रह्लादजी ने सतयुग में ही कर दी थी।
सभी जानते हैं कि प्रभातफेरी का नाम आते ही किसी विशेष अवसर का भाव खुद-ब- खुद मन में उभरने लगता है,क्योंकि प्रभात फेरी सद्भाव बढ़ाने व जन जाग्रति का सशक्त जरिया है।
अनेक सन्त धार्मिक प्रभात फेरी का समय समय पर विभिन्न शहरों में आयोजन करते रहते हैं। सभी संतों का उद्देश्य अशुभ प्रवृत्तियों को समाप्त करना तो होता ही है, साथ ही वे सृष्टि की समस्त इकाई के आत्मिक विकास पर जोर देते हैं। उनका पूरा प्रयास होता है कि केवल मनुष्य ही नहीं, जीव-जंतु,पशु-पक्षी,पेड़-पौधे व समस्त जड़-चेतन में शुभता का वास हो। जब पूरे वातावरण में शुभता व्याप्त हो जाती है तो समाज से विद्वेष,घृणा व कलह आदि अशुभ प्रवृत्तियां धीरे-धीरे विलीन होने लगती हैं और मैत्री भाव का पदार्पण होने लगता है। पेड़-पौधे,जीव-जंतु,पशु-पक्षी आदि भगवान का नाम नहीं ले सकते,लेकिन जब हम प्रभातफेरी में भजन-कीर्तन करते चलते हैं तो भगवान का नाम उनके कानों में भी पड़ता है। यानि वे सुन सकते हैं क्योंकि पेड़ों में भी जीवन होता है। प्रभात फेरी के दौरान लिए गए प्रभु नाम से इनके भीतर भी सकारात्मकता जन्म लेती है। इससे मनुष्य के साथ-साथ पूरा वातावरण सकारात्मक होने लगता है। और जब इसमें निरन्तरता रहती है तो धीरे-धीरे समाज से कलह,वैमनस्य व घृणा के भाव दूर हो मैत्री भाव को प्रमुखता मिल जाती है।
सारांश यही है कि निरन्तर धार्मिक फेरी में भागीदारी करने से मन से विकार दूर होते हैं और समाज में सकारात्मक भावना को बढ़ावा मिलता है ।

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