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सखी रे, सावन पावन लागे

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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पावन सावन-मन का आँगन…

सूखे ताल-तलैया भर गए,
पशु-पक्षी प्यासे थे, तर गए
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा,
मन चातक हरसावन लागे
सखी रे, सावन पावन लागे।

धरती नव-यौवन को पाई,
हरी चुनरिया ओढ़ के आई
बैठ पपीहा आम के डाली,
गीत खुशी के गावन लागे।
सखी रे सावन पावन लागे…

कहीं चम्पा, कहीं बेला महके,
गौरैया से आँगन चहके
ढोलक झाल पे कजरी के,
गीत बड़ा मनभावन लागे।
सखी रे सावन पावन लागे…॥