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सब भागे जा रहे

बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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घर में एक परिवार था,
आपस में कितना प्यार था
हर दिन फिर त्योहार था,
पैसा कमाने की खातिर
सब दूर होते जा रहे हैं।
रुपयों की खातिर सब,
भागे जा रहे हैं।

मन में कितना मेल था,
इंसान भी कितना दिलेर था
आपस में न बैर था,
एकाकी होकर
बड़े पछता रहे हैं।
रुपयों की खातिर सब,
भागे जा रहे हैं॥

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