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समय करता निगहबानी

राधा गोयल
नई दिल्ली
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गमों को इस तरह हैरान हो देखा नहीं करते,
दुखों को देखकर धीरज कभी खोया नहीं करते
खुशी से कर लो स्वागत, गम स्वयं हैरान हो जाए,
बहुत सोचे, और सोचकर दुविधा में पड़ जाए
मगर इस बात का उत्तर उसे बिल्कुल न मिल पाए,
कि…
ये कैसा शख्स है, जो ग़म से खुद आँखें मिलाता है ?
भागने की बजाय, उसको गले से लगाता है,
भला ऐसे मनुज का काल भी क्या कुछ बिगाड़ेगा ?
उसकी बिगड़ी हुई किस्मत, समय खुद ही संवारेगा।

माना कि दु:ख ज्यादा समय तक टिका रहता है,
मगर हर चीज की इक ‘समय सीमा’ भी तो होती है
और…
जिसने दुखों से खुद ही अपना नाता जोड़ा है,
समय खुद ही करेगा तय, समय पर निर्णय छोड़ा है
दुखों की लम्बी अवधि में भी, जो विचलित नहीं होता,
काल के गाल पर, इतिहास अपना वो स्वयं लिखता।
ग़म को मेहमां समझकर, उसकी वो करता मेजबानी
निगहबां उसका बनकर खुद, समय करता निगहबानी॥