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समलैंगिक शादी:बर्बादी का मुख्य कारण

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भारत देश में शादी पाणिग्रहण को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है या होता है। ऐसे में समलैंगिक शादी पशुता की निशानी है। आज विजातिय शादी, उसके बाद ‘लिव इन रिलेशन’ और उसके बाद समलैंगिक शादी होना, यह निश्चित ही मानवीय संस्कृति की महानतम विकृति है।
भारत की संस्कृति त्याग और संयम है, योग-साधना है। भारत में विवाह को धर्म विवाह कहा जाता है और पत्नी को धर्मपत्नी एवं सहधर्मिणी कहा जाता है-
‘अर्ध भार्या मनुषस्य, भार्या श्रेष्ठतमा सखा,
भार्या मूल त्रिवर्गस्य भार्या मूल तरिस्यति।’
मनुष्य की आधी तो उसकी पत्नी है। भार्या बहुत अच्छी मित्र होती है, इसलिए सहधर्मिणी कहा गया है। दूसरा वंश परम्परा के सञ्चालन के लिए विवाह किया जाता है। यदि विवाह न करें तो वंश परम्परा नहीं चल सकती। पर आज विवाह के बाद विवाह विवाद के रूप में मिल रहे हैं।
आज का विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि सगोत्री से विवाह करेंगे तो संतान उत्तम नहीं होगी। समान कुल होना चाहिए, धार्मिक विचारधारा वाले से विवाह करना चाहिए, साथ ही वैचारिक, सामाजिक और धार्मिक समानता होनी चाहिए।
इस समय विजातिय शादियों के दुष्परिणाम बहुत देखने को मिल रहे हैं। विजातीय शादी करने वाले सामाजिक, पारिवारिक और धार्मिक संस्थाओं से तिरस्कृत हो जाते हैं, भले ही वे अपने से संतुष्ट रहें।
‘लिव इन रिलेशन’ के विवाद देखे जाने के बाद वर्तमान में समलैंगिक विवाह के ऊपर समाज और न्यायालय में प्रकरण चल रहा है। समलैंगिकता यह मानसिक और कामुकता की विकृति है। विकृति को प्रकृति नहीं बनाया जा सकता है। एक प्रश्न का एक ही उत्तर होता है, जो यह सत्य या असत्य में होगा। इसमें लेकिन, परन्तु शब्द का उपयोग नहीं किया जा सकता है। समलैंगिकता का अर्थ समान लिंग के साथ विवाह जैसी मान्यता देना, यह कितना उचित और न्यानुकूल है ? इन लोगों की समाज में क्या स्थिति होगी। ऐसे व्यक्ति मानसिक अवसाद से ग्रसित हैं, ये लोग समाज के सामने किस रूप में सामने आएंगे ? इनको समाज कदापि स्वीकार नहीं करेगा और वे समाज में स्वतंत्रता से सामने आ भाई नहीं पाएंगे। इसी प्रकार २ महिलाएं भी कैसे समाज का सामना करेंगी ? वे स्वयं से आईने में अपना अक्स नहीं देख पाएंगी। क्या ये सन्तानोपत्ति कर पाएंगे ? इनका सम्बन्ध बहुत क्षणिक ही होगा, ये अवसाद ग्रस्त होंगे और कभी-कभी आत्महत्या या हत्या करने पर भी उतारू हो सकेंगे। समझना होगा कि, जो आकर्षण विपरीत लिंग में होता है वह समानधर्मी में नहीं होता है। इसको यदि सामाजिक व कानूनी मान्यता मिल जाएगी तो इससे सामाजिक और पारिवारिक असंतुलन को बढ़ावा मिलेगा, अपराधों की संख्याएँ बढ़ेंगी।

मुझे विश्वास है कि, संसद तो ऐसे बेहूदे विवाह को मान्यता नहीं देगी। यदि देती है तो इससे विश्व स्तर पर गलत सन्देश जाएगा। भारत की बहुत आदर्श संस्कृति और परम्पराएं रही हैं, जो ऐसी मान्यता का समर्थन नहीं करती है। हमें ४ पुरुषार्थ को पाने के लिए अपना जीवन सदाचारी और नियम विरुद्ध नहीं करना चाहिए।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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