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सम्मान में हुई लघुकथा संगोष्ठी

पटना (बिहार)।

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन के अवसर पर मुंबई से वयोवृद्ध कथाकार सेवा सदन प्रसाद की उपस्थिति हुई तो अगले ही दिन विभा रानी श्रीवास्तव के साथ मिलकर लेख्य मंजूषा के बैनर तले उनके सम्मान में एक लघुकथा संगोष्ठी का आयोजन कर डाला। इसमें उपस्थित लघुकथाकारों ने कहा कि लघुकथा को आगे बढ़ाने में बिहार से प्रस्तावित लघुकथा आंदोलन की अहम भूमिका रही है। लघुकथा सृजन के क्रम में बारीकियों को समझना बेहद जरूरी है।
लघुकथाकार सिद्धेश्वर ने बताया कि, कुछ लघुकथाकारों की उपस्थिति और प्रतिष्ठित कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता में यह यादगार शाम हुई। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि सेवा सदन प्रसाद ने कहा कि पटना शहर हमारी पुरानी कर्म स्थली है। लघुकथा ने अपने दमखम पर पूरे देश में अधिकांश पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इसलिए मैंने भी अन्य विधाओं के साथ लघुकथा को मूल रूप से अपनाए रखा है। उन्होंने तस्वीर ही पिता, एक छुपा हुआ की प्रस्तुति दी तो चितरंजन भारती ने बाउंसर ?, मधुरेश नारायण ने आग्रह, ध्रुव कुमार ने लकीर के उस पार, श्री द्विवेदी ने अंदेशा सहित विभा रानी श्रीवास्तव ने खुले पाँव और सिद्धेश्वर ने माँ का बंटवारा शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया।

संगोष्ठी में श्री प्रसाद को सम्मानित भी किया गया। सिद्धेश्वर ने उपस्थित साहित्यकारों के साथ एक छोटी परिचर्चा भी ‘लघुकथा हमारे शहर में कितनी प्रासंगिक’ विषय पर आयोजित कर दर्ज की।

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