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सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए आँचलिक कहानियों का सृजन जरूरी

पटना (बिहार)।

कहानी गद्य साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है, जो जीवन के किसी विशेष पक्ष का मार्मिक, भावात्मक एवं कलात्मक वर्णन करती है। हमें ज्ञात है कि कहानी हिन्दी गद्य की वह विधा है, जिसमें लेखक किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्योरा देता है जिसे पढ़कर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न होता है। सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए आँचलिक कहानियों का सृजन जरूरी है।
यह बात कथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ की युवा लेखिका रश्मि लहर ने कही। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में आभासी माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी इस कथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि, ओपेरा हाउस औऱ ठौर-ठिकाना जैसी कथा कृति एवं उपन्यास के माध्यम से कथा जगत में अपनी अलग पहचान बनाने में सक्षम अशोक प्रजापति अपनी मौलिक कथा शैली के कारण आज भी उतने ही सक्रिय हैं, जितने दो दशक पहले थे। उनकी सृजनात्मकता में शब्दों की कलाबाजी होते हुए भी भाषा की वह सहजता है, जो गिने-चुने कथाकारों की लेखनी में दिख पड़ती है। अनोखे दृश्य एवं प्रभावपूर्ण संवाद से आरंभ उनकी कहानियाँ पाठकों को आगे पढ़ने के लिए विवश कर देती है। अशोक प्रजापति अपनी अनुपम कथा शैली के कारण कथा जगत में दमदार उपस्थिति दर्ज करते हैं।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार अशोक प्रजापति ने कहा कि, समकालीन कहानी को आम पाठकों से जोड़ने में सेतु का काम मित्र सिद्धेश्वर जी कर रहे हैं। आँचलिक कहानी के प्रति उदासीनता की बात सहित आपने अपनी १ कहानी का पाठ भी किया।
सम्मेलन में ऑनलाइन कहानियाँ पढ़ने वाले कथाकारों में श्री प्रजापति, रश्मि लहर, ऋचा वर्मा, अलका वर्मा, सपना चन्द्रा व अनुज प्रभात आदि ने विभिन्न विषयों पर अपनी लेखनी को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया। इन कथाकारों के अतिरिक्त कहानी एवं कथा सृजन पर अपनी बेबाक टिप्पणी निर्मल कुमार डे, सुहेल फारुकी, सुधा पांडे, भगवती प्रसाद, सुधीर, मिथिलेश दीक्षित आदि ने प्रस्तुत की।

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