कुल पृष्ठ दर्शन : 1122

You are currently viewing सांस्कृतिक प्रगति का हिस्सा हैं भारतीय भाषाएँ

सांस्कृतिक प्रगति का हिस्सा हैं भारतीय भाषाएँ

वाराणसी (उप्र)।

भारत बहुभाषा वादी देश है। हम एक भाषावादी देश (यूरोप) के अलोक में नहीं देख सकते हैं। हमारी भाषाएँ सांस्कृतिक प्रगति का हिस्सा रही हैं और स्वतः विकसित हुई हैं। इस संगोष्ठी के पत्रों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे और हमें प्राप्त नवीन विचार राज्य एवं भारत सरकार के पास ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में लागू करने हेतु प्रेषित करेंगे।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (वाराणसी) के दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित ‘भारतीय भाषाओं में दर्शन का तत्वान्वेषण’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बुधवार को तीसरे और अंतिम दिन समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने यह बात कही।
विभाग के अध्यक्ष प्रो. राजेश कुमार मिश्रा ने तकनीकी सत्र की अध्यक्षता की। इस सत्र में विभिन्न प्रांत के प्रतिभागियों ने १२ शोध पत्र पढ़े।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली के प्रो. रज्जन कुमार ने जैन दर्शन की भाषा के आलोक में संगोष्ठी के विषय ‘भारतीय भाषाओं में दर्शन का तत्वान्वेषण’ पर प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि बड़ौदा विश्वविद्यालय के प्रो. टी.एस गिरीश कुमार ने भारतीय भाषाओं में दर्शन की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला और यूरोप की भाषा से अलग हटकर दर्शन की भाषा एवं शिक्षण के आयाम को बताया। द्वितीय विशिष्ट अतिथि पचायम कॉलेज चेन्नई के विभागाध्यक्ष के. संपत कुमार ने भारतीय भाषाओं में दर्शन की प्रासंगिकता एवं शिक्षण को बढ़ावा देने पर विचार व्यक्त किए।