कुल पृष्ठ दर्शन : 173

You are currently viewing सिपहसालार बनना है

सिपहसालार बनना है

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
******************************************

रचनाशिल्प:क़ाफ़िया-आर,रदीफ़-बनना है;बहर-१२२२,१२२२,१२२२,१२२२

हमें अपने वतन का सच्चा पहरेदार बनना है।
कटा दे एक पल में सर वही किरदार बनना है।

सँभाले वार सीने पर अडिग चट्टान जैसे हो,
हिमालय की तरह हमको वही गिरिनार बनना है।

नहीं पाये कोई छूने ये माटी भारती माँ की,
उड़ा दे शीश दुश्मन का वही तलवार बनना है।

निगहबानी करे सरहद की भर फौलाद सीने में,
रहे जो हर घड़ी सन्नध सिपहसालार बनना है।

हमें लानी है अरि के खून से रँग कर चुनर माँ की,
वहाँ काँपे सभी ऐसा हमें खूँखार बनना है।

अगर ये पाक अरु चीनी करें दादागिरी हमसे,
हमें उनके लिए बस काल का अवतार बनना है।

रहे कैसे सुरक्षित आम जनता सोचना होगा,
सुखी जीवन का हमको ही यहाँ आधार बनना है।

मिली है हमको आज़ादी बहुत कुर्बानियाँ देकर,
हुए बलिदान जो उनका हमें परिवार बनना है॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

Leave a Reply