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सीख है जीत-हार से

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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सीख है जीत-हार से,
कोई हार कर भी फिर आगे बढ़े
कोई जीत कर भी घंमड ना करे,
यहाँ तो हर मनुष्य का जीवन चक्र है
थोड़ा सुख है; थोड़ा दुःख है,
गम की इस अंधेरी रात में
फिर ललिमा छाएगी,
अरे यह बादल जरा छँट जाने दो
फिर सुबह हो जाएगी।
सीख है जीत-हार से…

अरे चलो, यह पड़ाव अभी ख़त्म नहीं हुआ है
अभी तो बहुत आगे बढ़ना है
यह मंझधार है,
किनारा बहुत दूर है
कोई हार कर फिर आगे बढ़े,
जीवन में कभी भी पीछे नहीं हटे
वही संसार की इस परीक्षा में सफल होता है,
कोई जीत कर भी घंमड ना करे
वही सच्चा हमदर्द होता है,
जो दु:ख में, दर्द में
दवा का काम करे।
सीख है जीत-हार से…

मतलब के लिए बहुत बार हम छले गए,
ज़िन्दगी में हम तो फिर भी थमें नहीं
चलना-संघर्ष करना बहादुरों की निशानी है,
सीख है जीत-हार से।
कोई हार कर भी आगे बढ़े,
कोई जीत कर भी घंमड ना करे॥