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सुख की खाई को है पाटा

सुबोध कुमार शर्मा 
शेरकोट(उत्तराखण्ड)

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आज समस्या हुई अनेक,
कैसे हो अब निराकरण
आओ मिल-जुलकर करें,
स्वच्छ चहुँ दिशि पर्यावरण।

निर्मलता से वृक्षों को काटा,
सुख की खाई को है पाटा
दूभर हो अब जीव भरण,
जब शुष्क हुआ पर्यावरण।

हरियाली का ह्रास हुआ,
वृक्षों का विनाश हुआ
शुद्ध वायु के अभाव में,
दूषित सबकी श्वांस हुई।

शैलों पर वृक्षों की पंक्ति,
थी जीवन की अनुपम शक्ति
शोकाकुल अब शुष्क शैल है,
कहां गई जन-जन की भक्ति।

देवों का जो वास बने थे,
आज वही वीरान बने
एक-एक वृक्ष है वहां दिखता,
जहां वृक्ष थे घोर घने।

संतुलित थी जिससे जलधारा,
टूट रहा अब धरा किनारा
नित्य प्रति अब बाढ़ आ रही,
अस्त-व्यस्त है जीवन सारा।

अब क्रांति लाओ मन में,
मुखरित भाव हो जन-जन में
‘सुबोध’ का यह एक संदेश,
हम दो हमारे दो बच्चे,दो वृक्ष अनेक॥

परिचय – सुबोध कुमार शर्मा का साहित्यिक उपनाम-सुबोध है। शेरकोट बिजनौर में १ जनवरी १९५४ में जन्मे हैं। वर्तमान और स्थाई निवास शेरकोटी गदरपुर ऊधमसिंह नगर उत्तराखण्ड है। आपकी शिक्षा एम.ए.(हिंदी-अँग्रेजी)है।  महाविद्यालय में बतौर अँग्रेजी प्रवक्ता आपका कार्यक्षेत्र है। आप साहित्यिक गतिविधि के अन्तर्गत कुछ साहित्यिक संस्थाओं के संरक्षक हैं,साथ ही काव्य गोष्ठी व कवि सम्मेलन कराते हैं। इनकी  लेखन विधा गीत एवं ग़ज़ल है। आपको काव्य प्रतिभा सम्मान व अन्य मिले हैं। श्री शर्मा के लेखन का उद्देश्य-साहित्यिक अभिरुचि है। आपके लिए प्रेरणा पुंज पूज्य पिताश्री हैं।

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