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एक दिन धरा पर..

गंगाप्रसाद पांडे ‘भावुक’
भंगवा(उत्तरप्रदेश)
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ये चुभती धूप,
ये चिलचिलाती गर्मी
वस्तुतः ऋतु परिवर्तन
के कारण ही है,
परंतु इसकी अति,
व असामयिक गति
के कारक हम स्वयं हैं,
प्रकृति से चल रही
छेड़छाड़,
अत्यधिक सुख भोग की
मानव की चाह,
मानव कृत प्रदूषण की
भरमार,
कटते वन,
बढ़ती पालीथिन
कारखानों जनित
विषाक्त कचरा,
वाहनों द्वारा निकलता
धुंआ,
ए.सी. एवं फ्रिजों द्वारा
उत्सर्जित जहरीली गैसों
का प्रभाव,
न्यूक्लियर एवं
एटॉमिक कचरों का
प्रभाव,
कुल मिलाकर,
क्षरित होती
ओजोन परत,
गलते ग्लेशियर,
सबके पीछे
सुखवादी मानव ही है,
जो तोड़ रहा है
प्रकृति के नियम,
परिणामतः झेल
रहा है अतिशय ताप,
अधिक शीत
एवं विनाशकारी
वर्षा का आघात,
यदि यूँ ही होता
रहा प्रकृति के
संसाधनों का अतिशय
दोहन,
शीघ्र ही समझिए
धरा का समापन,
एक दिन धरा पर
बढ़ जाएगा इतना
ताप,
सब-कुछ हो जाएगा
ख़ाक।

परिचय-गंगाप्रसाद पांडेय का उपनाम-भावुक है। इनकी जन्म तारीख २९ अक्टूबर १९५९ एवं जन्म स्थान- समनाभार(जिला सुल्तानपुर-उ.प्र.)है। वर्तमान और स्थाई पता जिला प्रतापगढ़(उ.प्र.)है। शहर भंगवा(प्रतापगढ़) वासी श्री पांडेय की शिक्षा-बी.एस-सी.,बी.एड.और एम.ए. (इतिहास)है। आपका कार्यक्षेत्र-दवा व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त प्राकृतिक आपदा-विपदा में बढ़-चढ़कर जन सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-हाइकु और अतुकांत विधा की कविताएं हैं। प्रकाशन में-‘कस्तूरी की तलाश'(विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) आ चुकी है। अन्य प्रकाशन में ‘हाइकु-मंजूषा’ राष्ट्रीय संकलन में २० हाइकु चयनित एवं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना एवं उनके निराकरण की तलाश सहित रूढ़ियों का विरोध करना है। 

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