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‘सुषमा’ की आभा

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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हँसते-मुस्कुराते हुए ही स्वत:
बंधन मुक्त किया स्वयं को,
लगता मानो कहीं थी प्रतीक्षा
अलौकिक में विलीन होने को।

नहीं अनभिज्ञ अपने क्षणों से
करती रही कर्म बिना विश्राम,
दृढ़ मीठी भाषा निरन्तर प्रवाह
आदर्श जीवन में कुछ देने को।

सुषमा बिखेरती रही आभा
छल-छल गंगा यमुना सरस्वती,
आओगी पुन:भारत भूमि पर
स्नेह से फिर देश दुलराने को ?

परिचय-डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा -वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा,तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा, स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,अंग्रेजी और भोजपुरी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा चिकित्सा संस्थानों की सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली ‘श्रेया’ को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान (न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अभा कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-“मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों-साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है।”

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