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सेवा से करते रहे निहाल

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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‘भारत रत्न’ जननायक कर्पूरी ठाकुर विशेष…

स्वतंत्रता संग्राम के अग्रिम नेता,
भारत छोड़ो के करिश्माई नेता
समस्तीपुर जिले का निर्धन बेटा,
ब्रिटिश प्रताड़ना को हृदय में समेटा
रामदुलारी-गोपाल का पुत्र चहेता।

सरल, सरस, गरीब, पिछड़ों का नेता,
ऐसा व्यक्तित्व मिले, जब युग हो त्रेता
जननायक, संघर्ष के अग्रणी प्रणेता,
समर्पित सेवा, जनहितकारी, भाव विजेता
दलितों, पिछड़ों, अगड़ों का दिल वो जीता।

ब्रिटिश विदेशी, अंग्रेजी भाषा किये थे नीचा,
हिन्दी राष्ट्रभाषा को सबके हृदय में सींचा
देश-प्रेम का यह सपना उसने हिंदी से ही खींचा,
बच्चे-बूढ़े, युवा-युवतियाँ, ज्ञान लिए हुए वो सबसे ऊँचा,
पढ़ने की चाहत होते ही, जगा शिक्षा ज्ञान समूचा।

लोहिया जी की प्रेरणा, समाजवाद की आँधी,
शिष्य बने वो लोहिया जी के, दर्शन उनके गाँधी
लोकनायक ने देशहित में उन पर नजरें साधी,
गुरु-शिष्य बन कर्पूरी जी चलते, हरते जे.पी. व्याधि
अंग्रेजों से लड़ते-भिड़ते, हर जंग जीत लिए वो आधी।

जात-पात को नंगा करते, बन समाजवाद की ढाल,
सत्य, सादगी, सेवा, जिनका व्यक्तित्व बड़ा विशाल
आरक्षण को लागू कर, दी वो दिव्य मिसाल,
भारत इस बड़े बिहार राज्य में, न पूछा कोई सवाल
ईमानदार, देवदूत बन सबको सेवा से करते रहे निहाल।

गंगा जल से शुद्ध व निर्मल कर्पूरी जीवन प्रण,
गाँधी, लोहिया, जयप्रकाश में सतत सत्य समर्पण,
देश की खातिर जीना-मरना, उनका जीवन दर्पण।
तेरा वैभव बना रहे माँ तुझ पर प्राण है अर्पण,
भारत माता के बेटे को ‘भारत रत्न’ से देश कर रहा तर्पण॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”