कुल पृष्ठ दर्शन : 299

You are currently viewing स्नेहमयी माँ

स्नेहमयी माँ

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
************************************************************
शरतकाल,ऋतु चक्र में,
आई है माँ धरती में।
उल्लास भरे प्रकृति में,
श्रृंगार किये रंग-बिरंगे साजों से।
शुभ्र बादलकी कश्ती से,
तैरने लगे मन मुक्ताकाश में।
धान का शीश झूमे क्षेत्रों में,
हिमेल हवा के हिल्लोल से।
शुभ्र ज्योत्स्ना के स्पर्श से,
कुश के वन भी नाचने लगे।
माँ,आपके आगमनी वार्ता से-
कमल पुष्पादि में होर लगें।
शिशिर स्नात पुष्प बरसे-
माँ,आपका चरण स्पर्श पाने के लिए।
ढाक का बोल,कैसर की ताल से,
झूमे जगत इन दिनों में।
छुट्टी मिली थी चार दिनों की,
माँ की हुई फिर कैलास वापसी।
उत्सव की बाती बुझने लगी-
फिर भी सबके दिलों में आस जागे।
आ रही है स्नेहमयी माँ फिर से-
शारद पूर्णिमा में,लक्ष्मी के रूप से।
आप,जो हो माँ,कैसे रह पाओगी,
माया के बंधन की जंजीर तोड़।
आना ही पड़ेगा आपको माँ बार-बार,
भिन्न-भिन्न ऋतु के हाथ पकड़॥

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

Leave a Reply