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जान प्यारी है या पैसे ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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केन्द्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए मोटर वाहन अधिनियम को लेकर देश में विचित्र विवाद चल पड़ा है। इस अधिनियम को लाने का श्रेय केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को है। केन्द्र में भाजपा की सरकार है लेकिन इसी पार्टी की कुछ प्रांतीय सरकारों ने इस अधिनियम को लागू करने से मना कर दिया है। इस नए अधिनियम के मुताबिक यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माने की राशि दस गुनी कर दी गई है। लायसेंस के बिना कार-चालन,नशे में वाहन-चालन, हेलमेट और सीट बेल्ट नहीं लगाना,संकेत की परवाह न करना,वाहन बहुत तेज चलाना, ट्रकों में सीमा से ज्यादा माल भरना आदि उल्लंघनों के लिए १०,००० रु. तक का जुर्माना और सजा का प्रावधान भी इस नए कानून में है। इतने सख्त प्रावधान इसीलिए रखे गए हैं कि यातायात नियमों का जितना भयंकर उल्लंघन भारत में होता है, दुनिया के बहुत कम देशों में होता है। करोड़ों लोग बिना लायसेंस या फर्जी लायसेंस लेकर कार चलाते हैं। शराब के नशे में धुत्त होकर भी अंधाधुंध वाहन चलाते हैं। हर साल लाखों दुर्घटनाएं होती हैं। इसी प्रवृत्ति को रोकने या घटाने के लिए गडकरी ने इतना सख्त कानून बनवाया है लेकिन इसका उद्देश्य सरकारी खजानों को भरना नहीं है। देश के लोगों को यह तय करना है कि उन्हें अपनी जान प्यारी है या पैसे प्यारे हैं। इस नए कानून का जबर्दस्त असर हुआ है। सड़क- दुर्घटनाओं की संख्या घटी हैं और लाइसेंस बनवाने वालों की संख्या तिगुनी-चौगुनी हो गई है। दिल्ली में १५ हजार की बजाय ४५ हजार लोग लायसेंस-दफ्तरों पर रोज भीड़ लगाए हुए हैं। अब सड़क के संकेतकों पर भी कार-चालक विशेष ध्यान देने लगे हैं। मालिकों ने अपने ड्राइवरों को कह दिया है कि संकेतकों का उल्लंघन करोगे तो जुर्माना तुमको भरना पड़ेगा। यह डर अगर कुछ माह भी बना रहे तो देश के यातायात की दशा में बहुत सुधार हो सकता है। इसके लिए देश गडकरी का आभारी रहेगा,लेकिन यह होना नहीं है, क्योंकि प्रांतों की कांग्रेसी सरकारों ने ही नहीं, कई भाजपा सरकारों ने भी इस नए अधिनियम के विरुद्ध खम ठोक दिए हैं। ऐसे में गडकरी क्या करेंगे ? वे भी राज्यों को कह रहे हैं कि आपको जो करना है सो करें। बीमारी गंभीर है और दवा कड़वी है। आपको पसंद नहीं है तो आप मीठी गोली खाइए और मस्त रहिए।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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