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स्वयं छाया हूँ मैं

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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नारी और जीवन (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)….

जीवन का गान हूँ मैं,
समय संग चलती हूँ मैं
प्रेम में समर्पण हूँ मैं,
भक्ति में अर्पण हूँ मैं।

कर्म में अर्जुन हूँ मैं,
गंगा में तर्पण हूँ मैं
प्रियतम का प्यार हूँ मैं,
संतान की माता हूँ मैं।

माता में धरणी हूँ मैं,
नदिया की धारा हूँ मैं
संघर्ष में शक्ति हूँ मैं,
आँधी में साहस हूँ मैं।

खेतों की हरियाली हूँ मैं,
बिखरन में सँवरती हूँ मैं
पुष्पों में गुलाब हूँ मैं,
काँटों बीच खिलती हूँ मैं।

पत्थर चीर बहती नदी हूँ मैं,
प्रकृति की गरिमा हूँ मैं
आकाश-सा विस्तार हूँ मैं,
धरती की बेटी हूँ मैं।

सूरज की रोशनी हूँ मैं,
चाँद की चाँदनी हूँ मैं
आग की चिंगारी हूं मैं,
संतति को देती विस्तार हूँ मैं।

जनक की दुलारी हूँ मैं,
परीक्षा देती सीता हूँ मैं
अर्पण में भक्ति हूँ मैं,
गीता में ज्ञान हूँ मैं।

गौरी-शारदा-काली हूँ मैं,
रण में लक्ष्मीबाई हूँ मैं
ईश्वर की रचना हूँ मैं,
संघर्षों में भी चलती हूँ मैं।

अस्मिता की संचेतना हूँ मैं,
छाती में बसी आत्मा हूँ मैंं
अबला नहीं सबला हूँ मैं,
हाँ,नारी का जीवन हूँ मैं।

बिखरे पलों में विश्वास हूँ मैं,
टूटे ना मनोबल आस हूँ मैं।
संपति कभी नहीं हूँ मैं,
कर्त्तव्य के लिए समर्पित हूँ मैं॥

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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