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स्वरूप की रक्षा करना ही ‘रक्षा-बंधन

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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रक्षाबंधन विशेष….

     'रक्षाबंधन' भारत का मुख्य त्योहार है, जो भाई-बहन के स्नेह को दर्शाता है। जैन धर्म में यह पर्व अत्यंत आस्था और उत्साह का प्रतीक माना जाता है। हस्तिनापुर की पावन धरा पर यह त्योहार सामाजिक ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक भी है। जैन धर्म में रक्षाबंधन का सूत्रपात हस्तिनापुर की पावन धरा से ही हुआ था।
 वामन अवतार में रक्षाबंधन का वर्णन मिलता है। महाभारत में भी रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रोपदी का भी एक वृतांत है।
  उज्जैनी नगरी में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे। उनके बलि, नामुचि, बृहस्पति और प्रह्लाद आदि ४ मंत्री थे। उनको धर्म पर श्रद्धा नहीं थी। एक बार उस नगरी में ७०० मुनियों के संघ सहितआचार्य श्री अकम्पन जी का आगमन हुआ। राजा ने मुनि को वंदन किया, पर मुनि तो ध्यान में लीन मौन थे। राजा उनकी शांति को देखकर बहुत प्रभावित हुआ, पर मंत्री कहने लगे,- ”महाराज! इन जैन मुनियों को कोई ज्ञान नहीं है, इसीलिए मौन रहने का ढोंग कर रहे हैं।" इस प्रकार निंदा करते हुए वापिस जा रहे थे और यह बात श्री श्रुतसागर जी मुनिश्री ने सुन ली। उन्हें मुनि संघ की निंदा सहन नहीं हुई, इसलिए उन्होंने उन मंत्री के साथ वाद-विवाद किया। मुनिराज ने उन्हें चुप कर दिया।
   राजा के सामने अपमान जानकर वह मंत्री रात में मुनि को मारने गए, पर जैसे ही उन्होंने तलवार उठाई, उनका हाथ खड़ा ही रह गया। सुबह सब लोगों ने देखा और राजा ने उन्हें राज्य से बाहर कर दिया। ये ४ मंत्री हस्तिनापुर में गए। यहाँ पद्मराय राजा राज्य करते थे। उनके भाई मुनि थे- विष्णु कुमार। सिंहरथ नाम का राजा इस हस्तिनापुर के राजा का शत्रु था। पद्मराय राजा उसे जीत नहीं सकता था। अंत में बलि मंत्री की युक्ति से उसे जीत लिया था, इसलिए राजा ने मुँहमाँगा इनाम माँगने को कहा, पर मंत्री ने कहा-"जब आवश्यकता पड़ेगी, तब माँग लूँगा।"

इधर, आचार्य श्रीअकम्पन जी आदि मुनि भी विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुँचे। उनको देखकर मंत्री ने उन्हें मारने की योजना बनाई। उन्होंने राजा के पास वचन माँग लिया।
उन्होंने कहा,-“महाराज हमें यज्ञ करना है इसलिए आप हमें ७ दिन के लिए राज्य सौप दें।” राजा ने राज्य सौंप दिया। फिर मंत्रियों ने मुनिराज के चारों और पशु, हड्डी, मांस, चमड़ी के ढेर लगा दिए, फिर आग लगा दी | मुनिवरो पर घोर उपसर्ग हुआ। यह बात विष्णु कुमार मुनि को पता चली तो वह हस्तिनापुर गए और एक ब्राह्मण पंडित का रूप धारण कर करके बलि राजा के सामने उत्तमोत्तम श्लोक बोलने लगे। बलि राजा पंडित से बहुत खुश हुआ और इच्छित वर माँगने को कहा। विष्णु कुमार ने ३ पग जमीन माँगी। विष्णु कुमार ने विराट रूप धारण किया और एक पग सुमेरु पर्वत पर रखा।दूसरा मानुषोतर पर्वत पर रखा और बलि राजा से कहा-“बोल अब तीसरा पग कहा रखूँ ? तीसरा पग रखने की जगह दे, नहीं तो तेरे सिर पर रखकर तुझे पाताल में उतार दूँगा।” चारों और खलबली मच गई।
तब देवों और मनुष्यों ने विष्णु कुमार को विक्रिया समेटने के लिए कहा। चारों मंत्रियों ने भी क्षमा माँगी। तब विष्णु कुमार मुनि ने अहिंसा पूर्वक धर्मं का स्वरूप समझाया। इस प्रकार विष्णु कुमार ने ७०० मुनियों की रक्षा की। फिर हजारों श्रावक ने सब मुनियों की वैयावृति की और मुनिराजों से क्षमा माँगी। जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन श्रावण सुदी पूर्णिमा थी। विष्णुकुमार से उनकी रक्षा हुई, अतः वह दिन रक्षा पर्व के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज भी यह दिन रक्षाबंधन पर्व के नाम से मनाया जाता है। रक्षा का संकल्प लेकर इस दिन रक्षासूत्र बांधते हैं।
जैन धर्म के अनुयायी इसको अत्यंत आस्था और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन प्राचीन मंदिर में जाकर मुनि विष्णु कुमार तथा ७०० मुनियों की पूजा करके पाठ करते हैं, और फिर परस्पर रक्षा का संकल्प लेते हुए एक-दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते हैं। वास्तव में कर्मों से न बंधकर स्वरूप की रक्षा करना ही ‘रक्षा-बंधन’ है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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