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स्वस्थ समाज का निर्माण मुश्किल है ‘लिव इन रिलेशनशिप’ से

राधा गोयल
नई दिल्ली
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आजकल इसका कुछ ज्यादा ही फैशन चल पड़ा है। आजकल के बच्चे पश्चिमी सभ्यता से बहुत अधिक प्रभावित हैं। वे केवल अपने भविष्य के विषय में सोचते हैं।भविष्य बनाते-बनाते शादी की उम्र निकल जाती है। वैसे भी आजकल उम्र निकले या न निकले, इंस्टाग्राम पर बच्चे आभासी दुनिया के पुरुषों से दोस्ती कर लेते हैं और धीरे-धीरे प्रेम की पींग भी बढ़ने लगती है। फिर धीरे- धीरे वह प्रेम इतना परवान चढ़ता है कि, घर से भागकर साथ में (‘लिव-इन’ में) रहना शुरू कर देते हैं, क्योंकि ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने से कोई जिम्मेदारी नहीं होती। जब दिल चाहे, तोड़ दो। ऊपर से देश का चौथा स्तंभ ऐसी खबरों का प्रकाशन करता है, जिसे पढ़कर आजकल की पीढ़ी को प्रोत्साहन मिलता है। अभी दिसम्बर २०२२ में अखबार में पढ़ा कि एक ४० वर्षीय पुरुष का अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद का प्रकरण चल रहा था, और वह किसी विधवा के साथ १२ वर्ष से ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रह रहा था। उस रिलेशन से उनके ३ बच्चे हुए। जिस दिन न्यायालय का फैसला आया, उससे अगले दिन ही दोनों ने अपने बच्चों की मौजूदगी में विवाह कर लिया। ऐसी एक अन्य खबर और भी आई थी कि, स्त्री-पुरुष वर्षों से ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रह रहे थे। नाती-पोते तक हो चुके थे। उसके बाद उन्होंने अपने बच्चों और नाती-पोतों की मौजूदगी में शादी की। यह सब पढ़कर बच्चों में क्या खाक संस्कार आएंगे ? वे तो वैसे ही पाश्चात्य संस्कृति के दीवाने हैं, जहाँ हर चीज पर बाजारवाद हावी है। वहाँ विवाह को पवित्र बंधन नहीं माना जाता। स्त्री-पुरुष की शादी का भी शायद अनुबंध होता है। जब एक-दूसरे से मन भर जाए, छोड़ दो और अन्य किसी से रिश्ता बना लो। सोने में सुहागा तो नहीं कहूँगी, आग लगे ऐसे को…। अब ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने वाले बच्चों के लिए एक कानून बन गया है कि उनको अपने अवैध माता-पिता दोनों की संपत्ति में से भी अधिकार मिलेगा। ऐसा होगा तो हर कोई अवैध संबंध बनाने से क्यों हिचकेगा। अदालत ने दलील दी कि इसमें नाजायज बच्चों का क्या कसूर है। मानते हैं कि, कोई कसूर नहीं है लेकिन ऐसे बच्चों को जायज भी नहीं कहा जा सकता। नाजायज बच्चे वे होते हैं, जिस लड़की के साथ जबरदस्ती दुष्कर्म किया जाता है और वह गर्भवती हो जाती है। ऐसे बच्चों को फिर अनाथ आश्रम या पालना-घर वगैरह में रखा जाता है, लेकिन ‘लिव इन रिलेशनशिप’ द्वारा पैदा हुए बच्चों को माता-पिता की संपत्ति से अधिकार मिलेगा तो फिर ऐसे किस्से रुकने वाले नहीं हैं।

कई बार लिव-इन में रहने वाले ऐसी एहतियात बरतते हैं कि, बच्चे पैदा ही न हों क्योंकि वे बच्चों की जिम्मेदारी से बचने के लिए ही तो लिव-इन में रहते हैं, लेकिन कभी-कभी सारी एहतियात रखी रह जाती है।
‘लिव इन रिलेशनशिप’ समाज के लिए एक धब्बा है। बेशक कानून इसको मान्य करार दे लेकिन भारतीय समाज अभी भी इन संबंधों को अच्छी नजर से नहीं देखता। ऐसे लोगों के संबंधों को लेकर बातें एवं फब्तियाँ कसने का दौर खत्म नहीं होता। छोटे शहरों में जहाँ लोग एक-दूसरे को जानते हैं, इस तरह के रिश्ते में रहने वालों का जीना मुहाल हो जाता है। छोटे शहरों में ही क्यों, यदि आपके आसपास कोई ऐसा जोड़ा रह रहा हो तो क्या आप उस रिश्ते को मान्यता देंगे।
ऐसे संबंध में रह रहा कोई व्यक्ति यदि बाद में विवाह करना भी चाहे तो, उसके लिए और मुश्किल खड़ी हो जाती है। उसका बीता समय उसके वर्तमान के सामने आकर खड़ा हो जाता है। विवाह एक पवित्र अवधारणा है। दो आत्माओं का मिलन है, जिसमें केवल पति-पत्नी ही दांपत्य सूत्र में नहीं बंधते, अपितु वधू-वर पक्ष के संबंधी भी उसमें शामिल होकर बहुत बड़े समाज की परिकल्पना के परिचायक बनते हैं। यही लोग आपस में एक-दूसरे के सुख-दु:ख के साझेदार भी होते हैं। दम्पति में आपसी मतभेद होने पर समझा-बुझा भी सकते हैं, लेकिन जहाँ कोई ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रह रहा होगा तो दोनों केवल अपनी दुनिया में मस्त रहेंगे। समाज से उनका कोई लेना-देना नहीं होगा। जब मन भर जाएगा तो एक-दूसरे को छोड़ देंगे, लेकिन क्या ऐसे सम्बन्ध से एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो पाएगा ?
समाज गर्त में चला जाएगा। हमारे नैतिक मूल्यों का ह्रास हो जाएगा और जिस समाज के कोई नैतिक मूल्य नहीं होते, उस समाज का पतन तो अवश्यंभावी है, क्योंकि बच्चों को संस्कार कौन देगा ? पहली बात तो ऐसे लोग बच्चे पैदा ही नहीं करेंगे। यदि गलती से हो गए तो बच्चों को आया के भरोसे छोड़ देंगे। वह आया बच्चों को अफीम खिलाकर सुला रही है या पीछे से अपने आशिक को बुलाकर इश्क़मिजाजी कर रही है या उल्टी-सीधी फिल्म लगा रही है, जिससे बच्चों में भी एक ऐसी मानसिकता पैदा हो रही है कि वे बड़े होकर घृणित कर्मों में लिप्त हो रहे हैं।
‘लिव इन रिलेशनशिप’ विवाह जैसा जन्म -जन्म का बंधन नहीं है। ऐसे में दूसरे साथी के मन में हमेशा साथी के छोड़ जाने का खटका बना रहता है। ऐसे लोगों के रिश्ते की वजह से उनके पूरे परिवार को तनाव झेलना पड़ता है, क्योंकि इस रिश्ते को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। देखा भी नहीं जाना चाहिए। लिव इन में यदि साथी बुरा साबित होता है तो रिश्ता टूटने के बाद दोनों को यह बात लंबे समय तक सालती रहेगी और किसी दूसरे पर भरोसा करना मुश्किल होगा। ऐसा रिश्ता टूटने पर महिला को अधिक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तनाव एवं अवसाद झेलना पड़ता है। इस तरह के रिश्ते से पैदा हुए बच्चों को समाज में तिरस्कार ही झेलना पड़ता है। शादी के बाद रिश्ते में जो आदर-सम्मान देखने को मिलता है, वह लिव इन में मुश्किल से देखने को मिलता है। एक कड़वा सच यह भी है कि ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के केवल १० फीसदी मामले ही शादी तक पहुँच पाते हैं।
हमारे समाज में बिना विवाह किए एक युवक-युवती के एक ही कमरे में साथ रहने को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता, पर इन दिनों सभी बड़े शहरों में ‘लिव इन रिलेशनशिप’ खूब पनप रही है। खास बात यह है कि, समाज बेशक उन्हें तिरछी नजर से देखे, लेकिन कानून उनके साथ खड़ा है। बहुत से मामलों में तो न्यायालय ने लिव-इन में रहने वाले जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने के भी निर्देश दिए हैं।
आज से करीब ४८ साल पहले १९७८ में उच्चतम न्यायालय ने पहली बार ‘लिव इन रिलेशनशिप’ को कानूनी तौर पर सही कहा।
ऐसा कानून बनने से अब तो यह हालत हो गई है कि, कई बार पति पहले से ही विवाहित है, पत्नी जीवित है या पत्नी विवाहित है और पति जीवित है, इसके बावजूद दोनों लिव इन में भी रह रहे हैं, और विवाहित जोड़े अपने पति और पत्नी से तलाक भी नहीं ले रहे। अखबार इन खबरों से रंगा पड़ा रहता है कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी या पति ने प्रेमिका के साथ मिलकर पत्नी की हत्या कर दी। ये कानून समाज में अनाचार फैलाने वाले हैं, हमारे नैतिक मूल्यों को ठेस पहुँचाने वाले हैं।
शुक्र है कि, एक विद्वान न्यायाधीश कौशल जयन्त ठाकुर एवं दिनेश पाठक की खंडपीठ ने कहा कि, वे ऐसी याचिका स्वीकार नहीं कर सकते, जो समाज में अवैध संबंधों को बढ़ावा दे। शुक्र है कि भारत में इस संबंध में संसद में कोई कानून नहीं बनाया गया है। अभी तो उच्चतम न्यायालय की ओर से इस संबंध में दिए गए आदेश को ही कानून मान लिया गया है। अब न्यायालय ने कुछ अलग प्रावधान किए हैं। पति और पत्नी दोनों के खिलाफ शिकायत के कुछ नियम बनाए हैं।
‘लिव इन रिलेशनशिप’ को लेकर कई फिल्में बनी हैं। सभी जानते हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं। वह समाज की अच्छाइयों और बुराइयों को बड़े पर्दे पर दिखाने के साथ ही कई बार समाज में चल रहे चलन पर भी ध्यान केन्द्रित करती है। सत्यानाश हो इन बॉलीवुड वालों का। ऐसी फिल्मों को देख-देख कर लोगों को ज्यादा प्रोत्साहन मिलता है। बॉलीवुड की दुनिया पर्दे पर जितनी आकर्षक नजर आती है, उतनी ही असल जिंदगी में भी है। फिल्म इंडस्ट्री में विभिन्न किरदारों का पात्र अदा करते-करते कभी-कभी उनके यह रिश्ते इतने मजबूत लगने लगते हैं कि, फिल्मों में अभिनय करने वाले यह नायक-नायिका असल जिंदगी में लिव-इन में रहने लगते हैं। नवाब पटौदी और अभिनेता सैफ अली खान की जिंदगी को कौन नहीं जानत ! इसी तरह से आमिर खान और किरण राव रहे।
हमारे कोई परिचित हैं। एक बार दिल्ली आए हुए थे। वो बोले-“हमारे पड़ौस में एक विधवा और विधुर हैं। दोनों अकेले हैं, बच्चे बाहर रहते हैं। लोगों ने राय दी है कि अकेले जिंदगी काटना बहुत मुश्किल है, इसलिए दोनों ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने का फैसला किया है।”
मैंने कहा-“क्या साथ रहने के लिए ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहना ही जरूरी हो ! माना कि अकेले रहना बड़ा मुश्किल काम है और खासकर बुढ़ापे में एकांत इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है लेकिन जरूरी तो नहीं है कि ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहकर समाज को एक गलत दिशा दिखाई जाए। वो दोनों विवाह करके भी तो साथ रह सकते हैं। दोनों को सहारा मिल जाएगा।
उनका कहना था कि “समाज क्या कहेगा ?” तब मैंने कहा कि,-“जब वो लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे, तब क्या समाज कुछ नहीं कहेगा ? यह तो एक तरह से समाज में गंदगी फैलाने वाला काम है। आज की पीढ़ी पर उसका क्या असर पड़ेगा, कभी सोचा है ?” शुक्र है कि बात बुद्धि में आई और बाद में उन्होंने बताया कि उन दोनों का बाकायदा विवाह करवा दिया है।

मैं ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के सख्त खिलाफ हूँ और शायद जो भी एक स्वस्थ समाज का निर्माण चाहता है, वह इस बात से सहमत होगा।

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