सत्यम सिंह बघेल
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
***********************************************************
हमें लगता है कि एक चाय वाला,चालक,दर्जी,किसान,पान की दुकान वाला या फिर जूते पॉलिश करने वाला एक सीमा तक ही सफल हो सकते हैं। वह देश-दुनिया में पहचान दिलाने वाली एक बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सकता,किन्तु ऐसा नहीं हैl यदि व्यक्ति सोच ले,ठान ले और दृढ़ संकल्पित हो जाये तो कुछ भी कर सकता है। अथक प्रयास और परिश्रम से सब-कुछ सम्भव है। हम क्या काम कर रहे,किस तरह का काम कर रहे यह बिल्कुल मायने नहीं रखता। मायने रखता है कि,हमारी सोच क्या है ? हमारा दृष्टिकोण कैसा है ? यदि हमारी सोच विस्तृत है और सकारात्मक दृष्टिकोण है तो हम किसी भी काम में कामयाबी के अम्बर को छू सकते हैं। दुनिया में अपनी खास पहचान बना सकते हैं।
ऐसे ही एक व्यक्ति हैं संदीप गजकस,जो आज ‘द शू लॉन्ड्री’ नाम से अपनी शू पॉलिशिंग एन्ड रिपेयरिंग कम्पनी चलाते हैं। संदीप गजकश ने अपने घर पर ही १२ हजार रुपये से जूते पॉलिश करने का व्यवसाय शुरू किया, खुद ही जूतों की पॉलिश करते थे। संदीप एक विस्तृत सोच और सकारात्मक दृष्टिकोण वाले जिज्ञासु व्यक्ति हैं। वे जूता पॉलिश के व्यवसाय को सिर्फ पॉलिश तक सीमित नहीं रखना चाहते,बल्कि वे पॉलिश के साथ जूते की रिपेयरिंग भी करना चाहते थे,ताकि पुराने जूते को फिर से एकदम नया बनाया जा सके। काम के साथ-साथ उन्होंने काफी लंबे समय तक शोध की,और इस दौरान ही उन तरीकों को भी ढूंढा। धीरे-धीरे उन्होंने कम्पनी ही खड़ी कर दी। आज उनकी कम्पनी का सालाना लेखा-जोखा ८ करोड़ रुपए से भी ज्यादा का है। देश के कई राज्यों सहित विदेश में भी इनकी कम्पनी काम कर रही है।
अगला उदाहरण देखिये-जयप्रकाश चौधरी,जिसे लोग संतु के नाम से भी जानते हैं। जो कभी कचरा बीनकर अपनी गुजर-बसर करता था,किन्तु आगे बढ़ने की ललक,जुनून और कठिन परिश्रम की वजह से आज संतु साल में लगभग ४ करोड़ रुपये कमाता है। संतु १९९४ में १७ वर्ष की उम्र में पैसा कमाने दिल्ली आ गया। दिल्ली आने के बाद कचरा बीनने का काम करने लगा। कचरा बीनकर दिनभर में लगभग १५० रुपये कमाने वाला संतु आज उसी कचरे के व्यवसाय से करोड़पति है। संतु की फर्म में १६० कर्मचारी काम करते हैं।
हमारे ही देश में ऐसे अनेक उदाहरण हैं,जिन्होंने दृढ़-संकल्प, आत्मविश्वास,परिश्रम और निरंतर प्रयास के बल पर फर्श से अर्श
को छुआ है। छोटी-छोटी जगह से आज आसमान की बुलंदियों पर हैं। एपीजे अब्दुल कलाम,पीएम नरेंद्र मोदी,सचिन तेंदुलकर,रजनीकांत,धीरूभाई अंबानी,महेन्द्रसिंह धोनी और भी ऐसे अनेक नाम हैं,जो जमीन से उठकर आज शिखर पर हैं। काम कोई भी हो,छोटा या बड़ा नहीं होता। छोटा या बड़ा होना काम पर नहीं,बल्कि हमारी सोच और दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। कुछ बड़ा करने की दृढ़-इच्छा है,भूख है तो फिर काम कोई भी हो,हम कुछ खास और बड़ा कर ही लेते हैं।
परिचय-सत्यम सिंह बघेल का जन्म ५ अप्रैल १९९० को सिवनी (म.प्र.)में हुआ है। निवास लखनऊ (उ.प्र.)में है। स्नातक (कम्प्यूटर विज्ञान) तक शिक्षित श्री बघेल की लेखन विधा-आलेख(विशेष रूप से संपादकीय लेख), कविता तथा लघुकथा है। कईं अखबारों, वेब पोर्टल और स्मारिका में भी रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। १५ से अधिक पुस्तकों (कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि साझा संकलनों) का सम्पादन भी कर चुके हैं। बतौर सम्प्रति फिलहाल आप एक प्रकाशन में संस्थापक, प्रकाशक,प्रबन्धक होने के साथ ही प्रेरणादायक वक्ता भी हैं।