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जो जोखिम लेते,वे रचते इतिहास

सत्यम सिंह बघेल
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

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खुद को आरामदायक स्थिति में बनाए रखने के लिए हम परिस्थितियों को ही वजह बनाते रहते हैं। कभी समय का अभाव,कभी भाग्य को दोष देना,तो कभी आर्थिक,शारीरिक,मानसिक स्थिति को ढाल बनाकर खुद को कमजोर साबित करते रहते हैं। सच तो यह है कि,हम भागते हैं, वास्तविकता से दूर भागते हैं,खुद से दूर भागते हैं। जीवन में जोखिम लेने से डरते हैं,बदलाव से बचते हैं। हम अपनी आरामदायक स्थिति से बाहर निकलना ही नहीं चाहते।
जो व्यक्ति जीवन में जोखिम लेते हैं,अपनी आरामदायक स्थिति से बाहर निकलते हैं,वे इतिहास रचते हैं। अदभुत,अविस्मरणीय और अकल्पनीय परिणाम लेकर आते हैं,जो किसी चमत्कार से कम नहीं होते। दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें आर्थिक,समाजिक,पारिवारिक या अन्य कई तरह की चुनौतियों के साथ-साथ शारीरिक विकलांगता की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा,कठिन संघर्ष करना पड़ा,किन्तु उन्होंने अपनी दृढ़-इच्छाशक्ति और कठिन परिश्रम के बल पर हर चुनौती का सीना चीरकर सफलता के शिखर को छुआ,तथा इतिहास रच दिया।
राष्ट्रीय स्तर की पूर्व वालीबाल खिलाड़ी तथा माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय विकलांग अरुणिमा सिन्हा लखनऊ से दिल्ली जा रही थीl रात के लगभग एक बजे कुछ शातिर चोरों ने उन्हें चलती ट्रैन से बाहर फेंक दिया। बायां पैर पटरियों के बीच में आने से कट गया। उनकी हालत देखकर चिकित्सक आराम करने की सलाह दे रहे थे। परिवार वाले व रिश्तेदारों की नजरों में वे कमजोर व विकलांग हो चुकी थीं,लेकिन उन्होंने किसी के आगे खुद को बेबस और लाचार घोषित नही होने दिया, न ही अपने हौंसले में कोई कमी आने दी। कृत्रिम पैर के सहारे दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराकर दुनिया को चौंका दिया,और इतिहास रच दिया।
दुनिया की सबसे तेज धावक रहीं विल्मा रुडोल्फ को ढाई साल की उम्र में पोलियो हो गया था। मजदूर माता-पिता की संतान विल्मा को चिकित्सक ने कह दिया कि यह लड़की कभी नहीं नहीं चल पाएगी,किन्तु कुछ बड़ा करने की चाह,खुद पर विश्वास,दृढ़-इच्छाशक्ति के बल पर ११ वर्ष की उम्र में विल्मा ने लड़खड़ाते हुए चलना सीखाl एक समय ऐसा भी आया कि विल्मा दुनिया की सबसे तेज धावक बनकर ओलम्पिक में दौड़ में ३ स्वरण पदक अपने नाम कर इतिहास रच दिया।

परिचय-सत्यम सिंह बघेल का जन्म ५ अप्रैल १९९० को सिवनी (म.प्र.)में हुआ है। निवास लखनऊ (उ.प्र.)में है। स्नातक (कम्प्यूटर विज्ञान) तक शिक्षित श्री बघेल की लेखन विधा-आलेख(विशेष रूप से संपादकीय लेख), कविता तथा लघुकथा है। कईं अखबारों, वेब पोर्टल और स्मारिका में भी रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। १५ से अधिक पुस्तकों (कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि साझा संकलनों) का सम्पादन भी कर चुके हैं। बतौर सम्प्रति फिलहाल आप एक प्रकाशन में संस्थापक, प्रकाशक,प्रबन्धक होने के साथ ही प्रेरणादायक वक्ता भी हैं। 

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