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रोटी और चाँद

रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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रोटी ने चाँद से कहा-
तू आसमान का चाँद है,
तो मैं इस धरती का,
तू अपनी चाँदनी भूमंडल पर
फैलाता है,
तो मैं अपनी चमक
उन क्षुधार्थ प्राणी के
नैनों में फैलाती हूँ।
तेरी ही तरह,
मैं भी कभी पूर्ण गोल
हो जाती हूँ,
तो कभी आधा-सवा टुकड़ों में
बंट जाती हूँ।
कभी अमावस की तरह,
गरीब की झोपड़ियों से
गायब ही रहती हूँ।
जैसे तुझे सब चाहते हैं,
वैसे ही मैं भी सबकी चाहत हूँ
बस तुझमें व मुझमें,
अन्तर इतना है
कि तू किसी यन्त्र-सा,
एक ही तरह चलता रहता है
पर मैं मनुष्यों के अनुसार,
चलती हूँ।
तू लेकर रोशनी सूरज से,
चमकता है
मैं नारी के हाथों के पसीने से
चमकती हूँ॥