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दलितों के घर भोजन

दीपक शर्मा

जौनपुर(उत्तर प्रदेश)

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चार लोग कंधे पर एक शव ले जा रहे थे,तभी वह अचानक बोल उठा-“अरे!! आप लोग मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं।”
उनके पीछे चल रही भीड़ डर गयी,यमदूत भी सतर्क हो गया-“ये लोग तुम्हें श्मशान ले जा रहें हैं,अब तुम अपने जीवन की अंतिम यात्रा पर हो।” यमदूत ने उन्हें आश्वस्त किया।
“ये तो वहीं लोग हैं,जिन्होने मुझे अछूत और घृणित मानकर गाँव से निष्कासित कर दिया था एवं मुझे आजीवन तिरष्कृत और अनादृत भाव से देखते रहे हैं।”
“लेकिन तुम तो सवर्ण कुल में पैदा हुए थे,फिर क्यों….?”
“मैं दलितों के घर भोजन कर लिया करता था,उनके गिलास में पानी पी लिया करता था,इसलिए लोग मुझे अछूत कहने लगे थे।”
“चलो अच्छा,अब तो तुम इस लोक से मुक्त हो चुके हो,तो अगले जन्म के लिए क्या इच्छा है तुम्हारी ?”
“मैं चाहता हूँ कि,फिर से सवर्ण कुल में ही पैदा होऊँ और दलितों के घर भोजन करूँ!!”

परिचय-दीपक शर्मा का स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है। आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय से वर्ष २०१८ में परास्नातक पूर्ण करने के बाद पद्मश्री पं.बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक से नवाजे गए हैं। फिलहल विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।आपकी जन्मतिथि २७ अप्रैल १९९१ है। बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) सहित एम.ए. तक शिक्षित (हिंदी)हैं। आपकी लेखन विधा कविता,लघुकथा,आलेख तथा समीक्षा भी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक भी जुड़े हैं। दीपक शर्मा की लेखनी का उद्देश्य-देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको लेखन के लिए सम्मानित किया जा चुका है।

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