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हिन्दी हम हिन्द ए वतन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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हिन्दी हम हिन्द ए वतन, भारत हिन्दुस्तान।
राष्ट्र एकता सरसता, प्रेम शान्ति दे मान॥

समरसता सद्भावना, हिन्दी है आधार।
जनमानस को जोड़ती, बोधगम्य संसार॥

बेटी प्राकृत मागधी, ब्रज अवधी परिपूत।
हिन्दी संस्कृत गुम्फ़िता, काव्यशास्त्र अवधूत॥

देशिल बोली शोभिता, उर्दू से गठजोड़।
आंग्ल निमज्जित शब्द से, हिन्दी है बेजोड़॥

सहज सुबोधा मधुरिमा, व्याकरण उपनीत।
हिन्दी हिन्दुस्तान की, भाषा सबकी मीत॥

आज़ादी की सारथी, क्रान्ति दूत आवाज़।
हिन्दी भाषा सहजतम, आन्दोलन आगाज़॥

जन-जन हिन्दी जोड़ती, वैज्ञानिक आधार।
गीत नृत्य अभिनय सहज, जीवन का उपहार॥

माध्यम यह संचार का, मनभावन चलचित्र‌।
मनमोहक संगीत स्वर, हिन्दी भाष पवित्र॥

शब्द मनोहर चारुतम, देवनागरी साज।
श्रेष्ठ राजभाषा वतन, लोकतंत्र स्वर ताज़॥

हिन्दी गरिमा भारती, विद्यापति कवि मान।
बरदाई ख़ुसरो लसित, आदिकाल स्वर शान॥

सुर तुलसी मीरा सृजित, कबीर सन्त महान।
लसित बिहारी सतसई, भूषण केशव गान॥

भक्ति शौर्य शिवबाबनी, छत्रसाल कवि वीर।
वीर करुण श्रंगार रस, बहे सरित दोउ तीर॥

छायावादी सल्तनत, पंत प्रसाद समान।
महाप्राण हिन्दी लसित, महादेवी सुगान॥

भारतेन्दु हिन्दी सृजित, शुक्ल द्विवेदी शान।
गुप्त युगल माखन सुमन, बोधायन यश मान॥

प्रेमचंद रेणु मुदित, दिनकर काव्य महान।
जानकी कवि आरसी, नागार्जुन कवि मान॥

मानक हिन्दी लेखिनी, देवनागरी शान।
लाखों साहित्यिक कृति, हिन्दी भाषा शान॥

हिन्दी है बोली खड़ी, राष्ट्र भक्ति स्वर प्रीत।
गाथा गाती शौर्य बल, रीति न्याय सद्नीति॥

भारत की दिल लाड़ली, हिन्दी कौलिक मान।
संस्कृत तनया शोभिता, अखण्ड राष्ट्र सुहान॥

बने राष्ट्र भाषा वतन, हिन्दी शीघ्र स्वदेश।
तभी विश्वगुरु बन सके, बोले जग परिवेश॥

हिन्दी जीवन वीथिका, कवि ‘निकुंज’ कविभाष।
गाऊँ हिन्दी जय वतन, नित सेवा अभिलाष॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥