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हिन्दी

केवरा यदु ‘मीरा’ 
राजिम(छत्तीसगढ़)
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मैं हिन्द देश की हिन्दी हूँ,
मैं भारत भाल की बिंदी हूँ।

मैं तुलसी दास की रामायण,
मैं वेद-पुराण,गीता गायन
मैं गीत,ग़ज़ल,रूबाई हूँ,
मैं दोहा,छंद,रोला,चौपाई हूँ
मैं जन-जन प्यारी हिंदी हूँll
मैं हिन्द देश…

मैं सूरदास की नैन बनी,
मैं कान्हा मुरली बैन बनी
मैं भोर बनी,मैं रैन बनी,
मैं हिन्द की अमनों-चैन बनी
मैं राजदुलारी हिन्दी हूँ,
मैं हिन्द देश…

मैं भजन हूँ मीरा बाई का,
मैं बलिदान लक्ष्मीबाई का
मैं सत्यवान की सावित्री,
मैं गंगा,गीता,गायत्री
मैं वेद मयी वो हिन्दी हूँ,
मैं हिन्द देश…

मैं जन-जन की पहचान बनूँ,
मैं विश्व पटल पर शान बनूँ
मैं युग-युग राष्ट्रगान बनूँ,
है तमन्ना आन-बान बनूँ।
मैं सरल हृदया हिन्दी हूँ,
मैं हिन्द देश की हिन्दी हूँ
मैं भारत भाल की बिंदी हूँl
हाँ मैं हिन्दी हूँll

परिचय-केवरा यदु का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। इनकी जन्म तारीख २५ अगस्त तथा जन्म स्थान-ग्राम पोखरा(राजिम)है। आपका स्थाई और वर्तमान बसेरा राजिम(राज्य-छत्तीसगढ़) में ही है। आपने स्थानीय स्तर पर शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में खुद का व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के तहत महिलाओं को हिंसा से बचाना एवं गरीबों की मदद करना प्रमुख कार्य है। भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए ‘मितानिन’ कार्यक्रम से जुड़ी हैं। आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल सहित भजन है। १९९७ में श्री राजीवलोचन भजनांजली, २०१५ में काव्य संग्रह-‘सुन ले जिया के मोर बात’,२०१६ में देवी भजन (छत्तीसगढ़ी में)सहित २०१७ में सत्ती चालीसा का भी प्रकाशन हो चुका है। लेखनी के वास्ते आपने सूरज कुंवर देवी सम्मान,राजिम कुंभ में सम्मान,त्रिवेणी संगम साहित्य सम्मान सहित भ्रूण हत्या बचाव पर और हाइकु विधा पर भी सम्मान प्राप्त किया है। केवरा यदु के लेखन का उद्देश्य-नारियों में जागरूकता लाना और बेटियों को प्रोत्साहित करना है। इनके जीवन में प्रेरणा पुंज आचार्यश्रीराम शर्मा (हरिद्वार) व जीवनसाथी हुबलाल यदु हैं।

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