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शांति निकेतन

डॉ. स्वयंभू शलभ
रक्सौल (बिहार)

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भाग-४………
शांति निकेतन’ के अनुभव को यदि संक्षेप में बताना हो तो कह सकता हूँ कि वहां से लौटने के बाद व्यक्ति के अंदर एक लघु ‘शांति निकेतन’ का निर्माण हो जाता है..। ‘शांति निकेतन’ की स्मृति एक प्रेरणा स्रोत बन कर हमेशा नवनिर्माण के लिए प्रेरित करती रहती है…।
इस यात्रा में कविगुरू रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा ‘शांति निकेतन’ के साथ ‘विश्वभारती’ और ‘श्रीनिकेतन’ जैसी विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं की स्थापना के पीछे उनके मूल उद्देश्य को जो समझ पाया,वह था लोक कला,पर्यावरण और भाषा संस्कृति का उनके मौलिक स्वरूप में संरक्षण एवं संवर्धन…। इस कड़ी में ‘शांति निकेतन’ के कुछ प्रमुख प्रकल्पों के उल्लेख के पहले कविगुरू के भाषा प्रेम की चर्चा करूंगा,क्योंकि इसके बगैर टैगोर को समझना कठिन है…। यह बात हमें अपनी भाषा संस्कृति के प्रति गंभीर होने की सीख भी देती है…उन्होंने अपना लेखन हमेशा बांग्ला में ही किया…। उनका मानना था कि जिस प्रकार माँ के दूध पर पलने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ होता है, उसी तरह मातृभाषा के प्रयोग से लेखन अधिक स्फूर्त और मजबूत होता है…। प्रकृति से निकटता कविगुरु की कविताओं की प्रेरणा थी और कदाचित इसी प्रेरणा ने निकेतन के विचार को भी जन्म दिया होगा…।
अपनी एक कविता में वे लिखते हैं-‘बहुत दिनों से बहुत कोस दूर पर…देखने गया हूँ पर्वत मालाएं…देखने गया हूँ सागर…दो आँखें खोल नहीं देखा…घर से सिर्फ दो कदम की दूरी पर…एक ओस की बूंद को…एक धान को बाली पर…।’ प्रकृति को अपने अंतर्मन से निहारते हुए…उसे प्रतिपल प्रतिक्षण जीते हुए कवि गुरु टैगोर ने कविताएं रचीं…। ‘शांति निकेतन’ की परिकल्पना को मूर्तरूप दिया और इसी मनोरम वातावरण में घने वृक्षों के नीचे बैठकर ‘गीतांजलि’ की रचना कर संसार को एक अनमोल उपहार दे दिया…।
निकेतन की विविधता हर जिज्ञासु के लिए चिंतन के अनेक द्वार खोलती है…। यही कारण भी है कि विश्व भारती में शोध और अध्ययन को प्रमुखता दी गई…। संगीत,नृत्य और कला की शिक्षा के लिए ‘कला भवन’ और ‘संगीत भवन’ बने…’श्रीनिकेतन’ में ग्रामीण विकास को आधार बनाया गया…। ‘रवींद्र भारती संग्रहालय’ में टैगोर से जुड़ी कलाकृतियों के साथ उनकी साहित्यिक रचनाओं की पांडुलिपियां भी मौजूद हैं। इस संग्रहालय ने वर्षों से इस सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संभालकर रखा है। ‘अमर कुटीर’ में कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया गया,जिससे वहां के स्थानीय ग्रामवासियों के जीवन स्तर में भी सुधार आया…। आज दुनियाभर से ‘शांति निकेतन’ आने वाले पर्यटक यहां की पारम्परिक शैली में निर्मित वस्तुओं की खरीदारी जरूर करते हैं…। रंग-बिरंगे हथकरघा उत्पादों,कपड़ों से बने साज-सज्जा के सामान यहां के प्रमुख आकर्षण हैं…। यहां भी एक संग्रहालय है जिसमें यहां की शिल्पकलाओं को प्रदर्शित किया गया है…।

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