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७ दशक की स्वतंत्रता और चंदू भैया की शोध डायरी…

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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स्वतंत्रता दिवस विशेष ……..

हमारे चंदू भैया सामाजिक और साहित्यिक जीव हैं और उनका जन्म भी हमारी तरह स्वतंत्र भारत में हुआ,इसलिए उनने भी बचपन में पुस्तकों में पढ़ा और अध्यापकों से सुन रखा था कि भारत स्वतंत्र है। तभी से उनको ये आभास होने लगा था कि भारत में रहकर वो जो मर्जी आए,कुछ भी कर सकते हैं। वे बचपन से ही स्वतंत्रता का उपयोग करते भी थे,पर उनको कई बार लगता था कि भारत के लोग कुछ ज्यादा ही स्वतंत्र हो गए हैं। इस ज्यादा स्वतंत्रता के बारे में उन्होंने हिंदी का शब्द कोश तलाशा तो उनको शब्द मिला ‘स्वच्छंदता।’ इसी तलाश के चलते यह स्वतंत्रता कब और कैसे स्वच्छंदता में परिवर्तित हो गयी,ये न कभी उनने पढ़ा और न ही सुना,पर महसूस कर रहे थे।
स्वतंत्रता का स्वच्छंदता में बदलना एक गहन शोध का विषय है,पर भारत में शोध बिना सरकारी सहायता के संभव नहीं है और कोई भी सरकार स्वतंत्रता के स्वच्छंदता में बदलने के कारण पर शोध करवाने में कोई रुचि नहीं रखती और ना कोई भविष्य में इस तरह की संभावनाएं दिखाई देती है। कारण,कोई भी विश्वविद्यालय इस तरह के शोध के लिए अनुमति देने को तैयार नहीं है, और न ही कोई प्राध्यापक इस विषय पर मार्गदर्शक बनने को राजी है,क्योंकि इस विषय में जानते-समझते सब लोग हैं,किन्तु कोई भी व्यक्ति लिखित में इसको साबित करने की जोखिम नहीं उठा सकता। जो जोखिम उठाएगा, सबसे पहले उसी की कलाई खुलेगी…ये भी तय है। इसलिए,भारत में स्वतंत्रता है या स्वच्छंदता..! यह समझने के लिए चंदू भैया ने एक दिन अपने विवेक का उपयोग करके अपने आसपास नजरें दौड़ाई और निजी तरीके से शोध करने का मन बनाया,जिसे चंदू भैया ने अपनी डायरी में दर्ज भी किया। आइए देखते हैं ७ दशक की स्वतंत्रता के दौरान चंदू भैया की शोध डायरी के ७ स्वतंत्र पृष्ठ,जहाँ हम सब परतंत्र हैं।

पहला पृष्ठ-सुबह नज़रें अपने घर के बाहर की सड़क पर गई जहाँ लोग आम दिनों की तरह ही आ-जा रहे थे कि अचानक स्वतंत्र भारत में जन्में कुछ स्वतंत्र युवा मोटर सायकिलों पर लदे एक के बाद एक दनादन नारेबाजी करते हुए गुजरे और मोटर सायकिलों के बिना बंसी के सायलेंसर की गर्जना से सारा मोहल्ला उन युवाओं को देखने के लिए घर के खिड़की-दरवाजों पर खड़ा हो गया। मुझे कोई बात समझ आती,इससे पहले ही एक पुतले को चौराहे पर खड़ा कर उन युवाओं ने मुर्दाबाद के नारों के बीच आग लगा दी।वे युवा स्वतंत्र थे और स्वछंद आचरण कर प्रसन्न थे। पास खड़े पुलिस के जवान स्वतंत्र आचरण को स्वच्छंद आचरण में परिवर्तित होता देख कर भी मूक बने रहे। यदि वे स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का फर्क उन युवाओं को समझाते,तो हो सकता था कि उनकी स्वतंत्रता बाधित हो जाती।

दूसरा पृष्ठ-आज जिला अधिकारी के कार्यालय में जाना हुआ। कार्यालय

खुलने का समय बाहर दीवार पर लिखा था प्रातः १०.३० बजे। बारह बजे गया, फिर भी न साहब थे और न ही उनके बाबू। चपरासी ने बताया,साहब तो शाम को ४-५ बजे तक आते हैं और साढ़े ४ बजे चले जाते हैं। हाँ, बाबू लंच के बाद ३ बजे आएंगे और ५ बजे तक रुकेंगे। तब तक आपको रुकना होगा। अब मैं बाहर अर्दली में बैठा सोच रहा था कि ये स्वतंत्र भारत के कर्मचारी हैं या स्वच्छंद भारत के। असली स्वतंत्र तो ये लोग हैं जो अपनी मर्जी से आते हैं और अपनी मर्जी से जाते हैं। जनता तो इनके एक दस्तखत के लिए सारा दिन अपनी स्वतंत्रता का त्याग कर देती है।

तीसरा पृष्ठ-आज कुछ रुपयों की जरुरत पड़ी तो बैंक जाना हुआ। सरकारी अफसरों की स्वतंत्रता के बाद बैंक की स्वतंत्रता का आलम बड़ा निराला है। बैंक में नगद खिड़की की अधिपति याने खजांची देवी की दादागिरी देख कर तो लगा कि इसे कहते हैं स्वतंत्रता और कुर्सी का नशा। प्रधान खजांची और बैंक के शीर्ष अधिकारी उस देवी के स्वच्छंद आचरण के आगे नत मस्तक और पर परतंत्र दिखे। प्रबंधक के ४ मौखिक और १ बार लिखित आदेश को भी वो कचरापेटी के हवाले करने का साहस रखती है। इसे देख कर लगा कि स्वतंत्र भारत में इन कम अंकों से उत्तीर्ण बैसाखी के सहारे कुर्सी पर बैठे कर्मचारियों के सामने योग्यता घुटने टेकती है।

चौथा पृष्ठ-स्वतंत्र में भारत जनता अपनी सरकार खुद चुन सकती है। मैंने भी युवा होते ही सरकार चुनना शुरू कर दिया था। अट्ठारह पूरे होते ही पहली बार मतदान किया और अपनी सरकार भी चुनी,जिसको चुना वह मंत्री बन गया। जब तक वो चुनाव में उम्मीदवार था,वो और मैं दोनों स्वतंत्र थे पर जैसे ही वो चुनाव जीता और मंत्री बना, स्वच्छंद हो कर विधान परिषद में उड़ान भर रहा है,और मैं अपने मोहल्ले में खुदी हुई सड़कों पर चलते हुए खुद को डरा हुआ तथा परतंत्र महसूस कर रहा हूँ। जानता हूँ कि स्वतंत्रता के अधिकार के तहत चुने गए मंत्री ने अपनी पूरी स्वतंत्रता का उपयोग किया और अपने समर्थकों या मित्र मंडली वालों के लिए स्वतंत्रता के द्वार खोल दिए तो मेरी हालत भी मोहल्ले की सड़क की तरह हो सकती है। मैं अगले चुनाव की प्रतीक्षा कर रहा हूँ,ताकि फिर से एक बार स्वतंत्र होने का अवसर मुझे मिले।

पांचवा पृष्ठ-शिक्षक से लेकर विद्यार्थी और पब्लिक स्कूल से लेकर कोचिंग-इंस्टिट्यूट तक स्वतंत्रता का गजब का खेल है। शिक्षक, कक्षा में न हो तो बच्चे स्वतंत्रता ही नहीं, स्वच्छंदता का आनंद लेते हैं। प्राचार्य न हो तो शिक्षक स्वच्छंद होते हैं। पब्लिक स्कूल तो वैसे भी स्वच्छंदता के अखाड़े से कम नहीं हैं,जहाँ सरकार के लाखों खर्च होते हैं और उच्च पर आते हैं इंग्लिश माध्यम के कोचिंग-इंस्टिट्यूट में पढ़ने वाले बच्चे…। सरकार का पैसा केवल गणना के लिए मास्टरों को दिया जाता है। शाला में रहो तो बच्चों को गिन लो,नहीं तो जनगणना,पशुगणना,बीमार गणना, मतदाता सूची बनाना आदि स्वतंत्र कार्य करो। जो वे स्वच्छंद होकर करते हैं, और पढ़ाई में सफलता का झंडा कोचिंग-इंस्टिट्यूट वाले बड़े-बड़े विज्ञापन देकर लहराते हैं। यही स्वतंत्रता है,वे घोषित करते हैं-हम स्वच्छंद हैं।

छठा पृष्ठ-अस्पतालों के मामले में सरकारी हो या निजी,दोनों की स्वतंत्रता से जन-जन का पाला पड़ा होता है। सरकारी में तो वार्ड बॉय से लेकर सर्जन तक सब स्वतंत्र होते हैं…और वहाँ आए मरीज की आत्मा को शरीर की कैद से मुक्त करवाने के लिए अपना असहयोग देकर पूरा प्रयास करते हैं। निजी अस्पतालों में स्वतंत्रता का आलम गज़ब का होता है। यहाँ के चिकित्सक मरीज की आत्मा को मरने के बाद भी शरीर से स्वतंत्र नहीं होने देते,बल्कि मरीज के परिजनों को आर्थिक रुप से स्वतंत्र करने का प्रयास जरुर करते हैं। दोनों जगह चिकित्सक स्वतंत्र होते हैं, और स्वच्छंदता से अपना कर्म करते हैं।

सातवां पृष्ठ-बोलने की स्वतंत्रता सबको मिली है। जिसे जो समझ पड़े,वो सार्वजनिक रुप से बोलने के लिए स्वतंत्र याने स्वच्छंद है। कोई भी खुल कर किसी को ‘पप्पू’ कह सकता है,’फेंकू’ कह सकता है। सामने न कह सकने वाली बात इशारों की भाषा में कह सकते हैं,पर अपनी पत्नी के सामने न मैं बोल पाता हूँ,ना इशारों की भाषा में बच्चों को संबोधित करते हुए कुछ कह पाता हूँ। स्वच्छंदता तो दूर,सही से स्वतंत्रता का भी उपयोग नहीं कर पाता हूँ। कईं बार लगता है चाहे भारत स्वतंत्र है,पर पत्नी के आगे संतरी से लेकर मंत्री…चपरासी से लेकर अधिकारी तक सब परतंत्र हैं और पत्नी स्वच्छंद है।

नेता से लेकर अभिनेता तक और शिखर से लेकर तलहटी तक जहां भी नजर दौड़ाएंगे, आप हर किसी को स्वच्छंद पाएंगे। यह तो बानगी है पर स्वच्छंदता अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरीके से दिखाई देगी… स्वतंत्रता के नाम यहां हर कोई स्वच्छंद है।

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