बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(रचना शिल्प:अरकान-फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन २१२ १२२२ २१२ १२२२)
दोस्ती को क्या समझे वो कोई पराया है,
दोस्ती में जिसने बस जह्र ही पिलाया है।
इस जहां में जीता था मैं गमों के साये में,
मदभरी निगाहों से फिर मुझे रुलाया है।
कुछ नहीं हुआ फिर भी दिल मेरा परेशां है,
खेल ये मुहब्बत का वो ही तो रचाया है।
दूर तक चले थे जब जिंदगी की राहों पर,
अजनबी वही कोई फिर मुझे सताया है।
इस कदर मुहब्बत में यूँ ही मर न जाऊँ मैं,
देख आज ‘बोधन’ फिर मुझको आजमाया है॥