पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’
बसखारो(झारखंड)
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(रचनाशिल्प:काफ़िया-आर,रदीफ़-है मिलता, बहर-१२२२ १२२२ १२२२ १२२२)
फ़क़त ही याचना करके,कहाँ अधिकार है मिलता,
उठा गाण्डीव जब रण में,तभी आगार है मिलता।
नहीं मिलता यहाँ जीवन,बिना संघर्ष के कुछ भी,
अगर मन हार बैठे तो,कहाँ दिन चार है मिलता।
अगर खुद पे यकीं हो तो,समंदर पार कर लोगे,
मगर साहिल पड़े रहकर,कहाँ उस पार है मिलता।
नसीबों में कहाँ सबको,सदा ही जीत मिलती है,
बिना कूदे समर में क्या,कभी यलगार है मिलता।
मुहब्बत में सदा सबको,कटाना शीश पड़ता है,
फ़क़त दिल को लगाने से,कहाँ ये प्यार है मिलता।
सदा ही आग में तपकर,बने कुंदन यहाँ सोना,
जले जो आग में पत्थर,तभी अंगार है मिलता।
‘प्रियम’ ये ज़िन्दगी हरदम,यहाँ लेती परीक्षा है,
बिना बलिदान के जीवन,कहाँ संसार है मिलता।
(इक दृष्टि यहाँ भी :आगार=मकान,घर)
परिचय- पंकज भूषण पाठक का साहित्यिक उपनाम ‘प्रियम’ है। इनकी जन्म तारीख १ मार्च १९७९ तथा जन्म स्थान-रांची है। वर्तमान में देवघर (झारखंड) में और स्थाई पता झारखंड स्थित बसखारो,गिरिडीह है। हिंदी,अंग्रेजी और खोरठा भाषा का ज्ञान रखते हैं। शिक्षा-स्नातकोत्तर(पत्रकारिता एवं जनसंचार)है। इनका कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता और संचार सलाहकार (झारखंड सरकार) का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़कर शिक्षा,स्वच्छता और स्वास्थ्य पर कार्य कर रहे हैं। लगभग सभी विधाओं में(गीत,गज़ल,कविता, कहानी, उपन्यास,नाटक लेख,लघुकथा, संस्मरण इत्यादि) लिखते हैं। प्रकाशन के अंतर्गत-प्रेमांजली(काव्य संग्रह), अंतर्नाद(काव्य संग्रह),लफ़्ज़ समंदर (काव्य व ग़ज़ल संग्रह)और मेरी रचना (साझा संग्रह) आ चुके हैं। देशभर के सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आपको साहित्य सेवी सम्मान(२००३)एवं हिन्दी गौरव सम्मान (२०१८)सम्मान मिला है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय श्री पाठक की विशेष उपलब्धि-झारखंड में हिंदी साहित्य के उत्थान हेतु लगातार कार्य करना है। लेखनी का उद्देश्य-समाज को नई राह प्रदान करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-पिता भागवत पाठक हैं। विशेषज्ञता- सरल भाषा में किसी भी विषय पर तत्काल कविता सर्जन की है।