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वेणी

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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वेणी-
मिलती संगम में सरित,कहें त्रिवेणी धाम!
तीन भाग कर गूँथ लें,कुंतल वेणी बाम!
कुंतल वेणी बाम,सजाए नारि सयानी!
नागिन-सी लहराय,देख मन चले जवानी!
कहे लाल कविराय,नारि इठलाती चलती!
कटि पर वेणी साज,धरा पर सरिता मिलती!

कुमकुम-
माता पूजित भारती,अपना हिन्दुस्तान!
समर क्षेत्र पूजित सभी,उनको तीरथ मान!
उनको तीरथ मान,देश हित शीश चढ़ाया!
धरा रंग कर लाल,मात का मान बढ़ाया!
शर्मा बाबू लाल,भाल पर तिलक लगाता!
रजकण कुमकुम मान,पूजता भारत माता!

पायल-
बजती पायल स्वप्न में,प्रेमी होय विभोर।
कायर समझे भूतनी,डर से काँपे चोर।
डर से काँपे चोर,पिया भी करवट लेते।
जगे वियोगी सोच,मनो मन गाली देते।
शर्मा बाबू लाल,यशोदा हरि हरि भजती।
हँसे नन्द गोपाल,ठुमकते पायल बजती।

कंगन-
पहने चूड़ी पाटले,कंगन मुँदरी हार।
हिना हथेली में रचा,तके पंथ भरतार।
तके पंथ भरतार,मिलन के स्वप्न सँजोये।
बीत रहे दिन माह,याद कर जो पल खोये।
शर्मा बाबू लाल,न चाहत मँहगे गहने।
याद पिया की साथ,हाथ बस कंगन पहने।

काजल-
भाता भारत मात को,रक्षा हित बलिदान।
बिंदिया काजल त्रिया को,सदा सुहाग निशान।
सदा सुहाग निशान,रहे होंठों पर लाली।
कुमकुम से भर माँग,सजे नारी मतवाली।
शर्मा बाबू लाल,मान हर नारी माता।
भारत माता सहित,मात का यश गुण भाता!

गजरा-
धरती दुल्हन-सी सजी,हरित पीत परिधान।
शबनम चमके भोर में,भारत भूमि महान।
भारत भूमि महान,ताज हिम का जो पहने।
पर्वत खनिज पठार,सरित वन सरवर गहने।
कहे लाल कविराय,नारि गजरे से सजती।
हिम से निकले धार,नीर से सजती धरती!

बिन्दी-
नारी भारत की भली,जब हो बिन्दी भाल।
विविध रंग की ये बने,सुंदर सजती लाल।
सुन्दर सजती लाल,शान सम्मान सिखाए।
शान भारती मात,शहादत पंथ दिखाए।
शर्मा बाबू लाल,अंक की छवि विस्तारी।
बढ़ता मान अकूत,लगाए बिन्दी नारी!

डोली-
डोली तेरे भाग्य से,चिढ़े साज श्रंगार।
दुल्हन ही बैठे सदा,उत्तम रखे विचार।
उत्तम रखे विचार,संत जैसे बड़भागी।
डोली दुल्हन संग,रहो तुम सदा सुहागी।
शर्मा बाबू लाल,सुता की भरना झोली।
उत्तम वर के साथ,विदा बेटी की डोली।

चूड़ी-
नारी पर हँसते कहे,चूड़ी वाले हाथ।
जाने क्यों जन भूलते,विपदा में तिय साथ।
विपदा में तिय साथ,लड़ी थी वह मर्दानी।
लक्ष्मी पद्मा मान,गुमानी हाड़ी रानी।
शर्मा बाबू लाल,नारियाँ बने दुधारी।
कर्तव्यों के बंध,पहनती चूड़ी।

झुमका-
झुमका लटके कान में,बौर आम ज्यों डाल।
गहनों के परिवेश में,झुमके रहे कमाल।
झुमके रहे कमाल,गीत कवि जिन पर गाता।
कभी बीच बाजार,कहीं झुमका गिर जाता।
कहे लाल कविराय,नृत्य में जैसे ठुमका।
नारी के श्रंगार,अजब है गहना झुमका!

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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