प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)
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तेरे आँचल में छुपा,कैसा ये अहसास,
सोता हूँ माँ चैन से,जब होती हो पास।
माँ ममता की खान है,धरती पर भगवान,
माँ की महिमा मानिए,सबसे श्रेष्ठ-महान।
माँ कविता के बोल-सी,कहानी की जुबान,
दोहों के रस में घुली,लगे छंद की जान।
माँ वीणा की तार है,माँ है फूल बहार,
माँ ही लय,माँ ताल है,जीवन की झंकार।
माँ ही गीता,वेद है,माँ ही सच्ची प्रीत,
बिन माँ के झूठी लगे,जग की सारी रीत।
माँ हरियाली दूब है,शीतल गंग अनूप,
मुझमें-तुझमें बस रहा,माँ का ही तो रूप।
माँ तेरे इस प्यार को,दूँ क्या कैसा नाम,
पाए तेरी गोद में,मैंने चारों धाम॥