नीलू चौधरी
बेगूसराय (बिहार)
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अट्टालिकाओं में रहने वालों,
तुम खरीदते हो ऑनलाइन
पैकेट बंद अनाज
कैसे महसूसोगे किसानों के दर्द को ?
तुम्हें नहीं पता,
वो कैसे उगाते हैं खेतों में अन्न ?
कर्जे का बोझ सर पर उठा,
झेलते हैं मौसमों की मार
पर हारते नहीं हिम्मत।
जूझते हैं अपनी बदकिस्मती से,
तपती धूप हो या हाड़ जमाती ठंड
उन्हें जाना होता है खेतों पर,
नहीं दे सकते कभी छुट्टी के लिए आवेदन।
अहर्निश श्रम से बढ़ा देते हैं,
बंजर भू की उर्वरता
सींचते हैं फसलों को स्वेद कणों से,
चीर कर धरा का वक्ष उपजाते हैं अन्न
तब जाकर भरता है सबका पेट।
जिनकी वजह से जी रहे हो तुम,
मत करो उन्हें उपेक्षित
ईश्वर के ही रूप हैं अन्नदाता,
विष्णु की तरह
पालनकर्ता…,
पर शंख,चक्र,गदा की जगह
सुशोभित हैं इनके हाथ,
खाद,बीज और माटी से॥