मंडला(मप्र)।
सतीशराज पुष्करणा लघुकथा के मसीहा थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर लघुकथा को मान्यता दिलाने व प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनकी सृजनात्मक क्षमता को मैं नमन करता हूँ। नए लघुकथाकारों को भी उन्होंने प्रोत्साहित किया।
यह बात मुख्य अतिथि लेखक प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे (म.प्र.)ने कही। अवसर था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम का,जिसमें दिवंगत वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. पुष्करणा को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
परिषद के तत्वाधान में आयोजित इस कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र की नवीन काव्य कृति ‘जो देखते हो वह नहीं हूँ मैं!’ की समीक्षात्मक टिप्पणी संयोजक सिद्धेश्वर ने व्यक्त की।
डॉ. पुष्करणा को समर्पित संगोष्ठी के प्रथम चरण में विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि मानवीय संबंधों की त्रासदी,राजनीति का विभक्तसिकरण, व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा धार्मिक विसंगतियों को व्यक्त करने में दिवंगत लघुकथाकार पूर्णत: सक्षम थे। संगोष्ठी में ऋचा वर्मा,मीना कुमारी परिहार ने भी डॉ. पुष्करणा की लघुकथाओं का पाठ किया।
इस ऑनलाइन इस कार्यक्रम के दूसरे चरण में संतोष मालवीय (रायगढ़),मधुरेश नारायण, पुरुषोत्तम दुबे,दुर्गेश मोहन आदि ने कविताओं का पाठ कर दर्शकों को मनमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम में मधुदीप,राज प्रिया रानी,श्रीकांत गुप्ता,सुरेश वर्मा, संगीता गोविल,अंजू भारती आदि ने भी अपनी भागीदारी निभाई।