संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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विजयादशमी विशेष…
क्यों रावण को कोसते हो साहब…
हम कौन-से राम बने बैठे हैं!
इस जहां में, राम के मुखौटे में,
हर गली में रावण मिल जाएंगे…।
अरे वो तो रावण था,
जिसने ना तो लकीर लांघी,
ना ही मर्यादा तोड़ी…,
यहां तो सीता को उठाने के लिए…
अमर्यादा-लकीरें लांघी जाती है…।
उसमें तो सिर्फ बदले की भावना थी…,
बहन पर हुए अत्याचार की…
विरोध जताने सीता को,
सिर्फ अपह्त किया था…
अब ये हालात है कि,
हवस की भावना में…
कई सीता उठाई जाती है…,
जलाकर मिटाई जाती है…
बरबाद की जाती है,
दिन-दहाड़े कई जिंदगी…
भोग-विलास और हवस की लालसा में…।
उसने तो वेश ही बदला था…,
यहा ज़मीर भी गिरवी रखा जाता है…
अपने आकाओं के पैरों पर…,
बदलकर इंसानियत का भेष…
दिखा देते हैं, अपनी जात,
अपना बाहुबल और
अपने दबंगी आकाओं का…,
राजनीतिक दबदबा…।
क्या बात करते हो साहब…,
रामराज की…
यहाँ कौन-से राम बसते हैं…!
राम की बात तो छोडो साहब..
गर अच्छा इंसान ही बन पाओ तो…,
जरुरत नहीं है यहाँ…।
किसी राम राज की…,
किसी राम के राज की…॥