संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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मिटा ताप का तेजस काया,
झूम-झूम के सावन आया
काले बादल, बरखा भायी,
माया मोह भी अब शरमाई
मस्त मगन सावन है आया,
धरती माँ का भीगा आँचल
बरसे बरखा, फटते बादल,
बच्चे, बूढ़े, युवा हैं पागल
सावन में हर शख्स है घायल,
हम सब भी मौसम के कायल
गरम जलेबी, गरम सिंघाड़ा,
कहीं छन रहा सांभर बड़ा।
वर्षा का आनंद अजब-गजब है,
घर में बंद हो सब स्वछंद है
कहीं तेज है कहीं मन्द है,
मन में सबके अलग द्वंद है
बच्चों को भ्रमण ध्वनि पसंद है,
टेलीविजन में महिलाएं कैद है
बूढ़े समाचार को मुस्तैद हैं,
युवा जवानी झर-झर पानी
सुने जोर-शोर से गीत रवानी,
झूम रही थी बरखा रानी,
जोर चली आँधी तूफानी
घर-घर में था पानी-पानी,
अंगड़ाई में सभी जवानी
त्राहि-माम का कहर था पानी।
प्रसन्न मेघ, बाबा बर्फानी,
निर्झर-निर्झर बहता पानी,
प्रकृति छटा, सौंदर्य दीवानी,
हर सावन की यही कहानी
सावन रूत बड़ी मस्तानी,
मस्त मगन है बरखा रानी
भरे कूप, तालाब में पानी,
मर्यादा तोड़े नाला-नाली
आसमान की छटा निराली,
भक्ति भाव सबकी मतवाली
चढ़े वस्त्र केसरिया वाली,
शंकर शिव के धाम पर ताली।
झुंड केसरिया बोल बम वाले,
नदियों से लोटा जल वाले
थके न कंधे काँवर वाले,
जय कारा बोल बम बम वाले
शिव की महिमा औघड़ वाली,
देते सब को भर भर थाली।
सजता सावन, भक्त की थाली,
माह सावन की अदा निराली॥