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महिमा शब्द की

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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यमक अलंकार आधारित…

महिमा शब्द ‘वर्ण’ की जानो,
सात ‘वर्ण’ ही मुख्य मान।
‘नव’ दिवस हो शुभमंगलमय,
आओ गा लें ‘नव’ रस गान॥

कृषक रात भर ‘खेत’ में रहा,
रण में रहा इक सैनिक ‘खेत।’
‘रेत‌’ न आरी से वृक्षों को,
बंजर भूमि बनेगी ‘रेत।’
रखो ‘जान’ पहचान छंद से,
मौलिकता कविता की ‘जान॥’
आओ गा लें नवरस गान…

पूर्ण ‘अंक’ मिले परीक्षा में,
खुश पिता ने भर लिया ‘अंक।’
‘कंक’ रहा वो श्रम कर-करके,
दिखता था जैसे हो ‘कंक।’
बिन ‘अर्थ’, ‘अर्थ” इस जीवन का,
होता नहीं, न होता मान॥
आओ गा लें नवरस गान…

दिन गया ‘आम’ का मत खाना,
बरखा में हो जाता ‘आम।’
‘काम’ सोच-विचार कर करना,
काम बाद बढ़ जाता ‘काम।’
‘हल’ होगा हर इक कठिनाई,
मति जोत बुध-‘हल’ छेड़ तान॥
आओ गा लें नवरस…

नभ ‘अरुण’ दिख रहा ‘अरुण-अरुण’ दिखता ‘पूर्व’, ‘पूर्व’ सा हाल।
‘सर’ झुका ‘सर‌’ में बिम्ब देखे,
रखे रश्मि का ‘बाल’ ‘रवि’ ‘बाल।’
‘कल’ चमका ‘कल’ भी चमकेगा,
‘अम्बर’ में ‘अम्बर’ सा तान॥
आओ गा लें नवरस गान…

गृह ‘जल’ रहा सभी ‘जल’ लाओ,
‘बुझने’ का इसका कुछ ‘बूझ।’
जन निकाल कई ‘कक्ष’ फंसे,
‘कक्ष’ दबा बच्चों को कूद।
जिसने जलाया ‘दंड’ मिलेगा,
‘दंड’ पडे़ तब होगा भान।
आओ गा लें नवरस गान…॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।