शीलाबड़ोदिया ‘शीलू’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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राम और श्याम स्कूल से छुट्टी के बाद खेलते-खेलते घर जा रहे थे। तभी सड़क से निकलते हुए साँप पर श्याम का पैर पड़ गया और साँप ने उसे काट लिया। पीछे और भी बच्चे आ रहे थे, लेकिन किसी ने हिम्मत नहीं दिखाई कि, साँप का जहर निकाल सके। राम, श्याम का पक्का दोस्त था। राम बोला,-“श्याम तुम घबराओ मत अभी ठीक हो जाओगे, तुम सोना मत। मैं तुम्हारा ज़हर निकाल देता हूँ”, लेकिन श्याम धीरे-धीरे बेहोश होने लगा। राम ने जल्दी से अपनी शर्ट फाड़ कर पैर के ऊपर बांधी और मुँह से जहर चूस कर निकालने लगा, पर वह भी बच्चा था तो जहर उसके अंदर प्रवेश कर गया और वह भी जल्दी बेहोश हो गया। पीछे से आ रहे बच्चों ने दौड़कर राम और श्याम के घर जाकर बताया कि श्याम को साँप ने काट लिया। दोनों के परिवार के सदस्य सुनकर ही घबरा गए। राम और श्याम की माँ, दादा, दादी दौड़कर पहुँचे। य़ह ख़बर सरपंच साहब के पास भी पहुँच चुकी थी। वो गाड़ी लेकर पहुँच गए।
सरपंच साहब बोले,-“जल्दी करो, दोनों बच्चों को अस्पताल ले चलो, बैठो सब गाड़ी में।”
दोनों बच्चों को गोदी में लेकर राम और श्याम के परिवार के लोग गाड़ी में बैठ गए। श्याम की माँ बहुत रो रही थीं। राम की माँ बोली,-“बहन हिम्मत रखो, कुछ नहीं होगा अपने बच्चों को।”
“हाँ, बहन ये राम और श्याम की जोड़ी है कभी टूटेगी नहीं, लेकिन पता नहीं! साँप कितना जहरीला था। हम अस्पताल चल रहे हैं ना। सब ठीक हो जाएगा।”
सरपंच साहब ने जल्दी ही सब इंतजाम करवा दिया। अस्पताल में इलाज शुरू हुआ। १ घंटे में ही दोनों को होश आ गया। आँखें खुलते ही राम ने श्याम के बारे में पूछा। श्याम को कुछ देर से होश आया, तब तक राम, श्याम के पास बैठा रहा। राम और श्याम के परिवार के सभी सदस्यों ने सरपंच साहब को कहा, सरपंच साहब आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आज आप नहीं होते तो, हमारे बच्चों का क्या होता ?
सरपंच बोले नहीं,-“नहीं धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं। आप सभी अपने ही हैं और ये तो राम और श्याम की जोड़ी कभी नहीं टूटेगी।”
परिचय-शीला बड़ोदिया का साहित्यिक उपनाम ‘शीलू’ और निवास इंदौर (मप्र) में है। संसार में १ सितम्बर को आई शीला बड़ोदिया का जन्म स्थान इंदौर ही है। वर्तमान में स्थाई रूप से खंडवा रोड पर ही बसी हुई शीलू को हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषा का ज्ञान है, जबकि बी.एस-सी., एम.ए., डी.एड. और बी.एड. शिक्षित हैं। शिक्षक के रूप में कार्यरत होकर आप सामाजिक गतिविधि में बालिका शिक्षा, नशा मुक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी को समझाओ अभियान, पेड़ बचाओ अभियान एवं रोजगार उन्मुख कार्यक्रम में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-कविता, कहानी, लघुकथा, लेख, संस्मरण, गीत और जीवनी है। प्रकाशन के रूप में काव्य संग्रह (मेरी इक्यावन कविता) तथा १५ साझा संकलन में रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। इनको मिले सम्मान व पुरस्कार में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड सम्मान (साझा संकलन), विश्व संवाद केंद्र मालवा (मध्य प्रदेश) द्वारा सम्मान, कला स्तम्भ मध्य प्रदेश द्वारा सम्मान, भारत श्रीलंका सम्मिलित साहित्य सम्मान और अखिल भारतीय हिन्दी सेवा समिति द्वारा प्रदत्त सम्मान आदि हैं। शीलू की विशेष उपलब्धि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में रचना का शामिल होना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य साहित्य में उत्कृष्ट लेखन का प्रयास है। मुन्शी प्रेमचंद, निराला, तुलसीदास, सूरदास, अमृता प्रीतम इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज गुरु हैं। इनका जीवन लक्ष्य-हिन्दी साहित्य में कार्य व समाजसेवा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी रग-रग में बसी है।”