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द्वार तुम्हारे बंद

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कैसे आऊँ निकट तुम्हारे!
बंद तुम्हारे द्वार
ऊषा की लाली संग आयी,
ले किरणों का हार।

मधुर कंठ से विहग बुलाते,
होता भँवरों का गुंजार
कैसे आऊँ निकट तुम्हारे,
बंद तुम्हारे द्वार।

पथ दिखलाने मैं तो आयी,
मौन सुमन संग चली बयार
आतुर आने को प्रकाश,
पर तुम सोये इस बार।

कैसे आऊँ द्वार तुम्हारे,
बंद तुम्हारे द्वार
निखिल जगत लग गया कार्य में,
खुला प्रकृति का मधु-भंडार।

मिलने को सब तुमसे आये,
सुन लो मेरी तनिक पुकार।
कैसे आऊँ द्वार तुम्हारे,
बंद तुम्हारे द्वार॥