राधा गोयल
नई दिल्ली
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प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व…
किशोरावस्था में बहुत-सी ऐतिहासिक पुस्तकें पढ़ने का सौभाग्य मिला। अनेक लोगों के व्यक्तित्व से मैं बेहद प्रभावित हुई।उनमें से एक महान व्यक्तित्व था विष्णु गुप्त…, एक शिक्षक जिसने खण्ड-खण्ड भारत को एक सूत्र में बाँधा। जब सीमावर्ती प्रान्तों को रौंदता हुआ विश्व विजय का अभिलाषी सिकन्दर आया। कुछ उसके द्वारा परास्त किए गए, कुछ ने सिकन्दर की आधीनता स्वीकार कर ली। तक्षशिला के युवराज आम्भी कुमार ने अपनी महत्वाकांक्षा के कारण सिकन्दर से मित्रता कर ली। ऐसे समय में एक शिक्षक ने राष्ट्र निर्माण का संकल्प लिया और निकल पड़ा अपने ध्येय को पूरा करने के लिए। कोई साधन नहीं, कोई धन नहीं… लेकिन दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ। केवल एक ध्येय कि भारत को एक सूत्र में पिरोना है। यह कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि हर राजा स्वयं को स्वतंत्र समझता था। यह उसी शिक्षक की कोशिश और कूटनीति का परिणाम था कि सिकन्दर की विश्व विजय की कामना पूरी नहीं हो सकी। चाणक्य/कौटिल्य की नीतियों ने राजाओं में एक चेतना जागृत करके एकजुट होकर लड़ने के लिए प्रेरित किया। नारी सेना भी बनाई गई। विषकन्या उसी युग की देन है, जिनके चुम्बन मात्र से बिन मांगे मौत मिल जाती थी।शक्तिशाली नंद वंश के अति समझदार महामात्य मुद्राराक्षस के होते हुए अपनी कूटनीति से विलासी नंद वंश का सम्पूर्ण नाश किया। षडयंत्र करने वाले राजाओं को विषकन्या के सौन्दर्यजाल में फँसाकर मौत के मुँह में पहुँचाया। समय की माँग को देखते हुए अहिंसा का मार्ग छोड़ कर श्रीकृष्ण की नीति शठे शाठ्यम समाचरेत की नीति अपनाई। देश के शत्रुओं को समाप्त करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद के सभी उपाय किए। वो समय की माँग थी, यदि ऐसा न होता तो भारत उसी समय विदेशी दासता की जंजीरों में जकड़ा होता।
हमारे पूर्वजों ने वह समय देखा है कि किस तरह विभिन्न ताकतों के कारण हम वर्षों तक विदेशी ताकतों के आधीन रहे। आज मेरे भारत को फिर से कृष्णनीति और चाणक्य नीति और उन जैसे पथ प्रदर्शक की जरूरत है, जिन्होंने बताया कि भले ही किसी समस्या का अंतिम विकल्प युद्ध नहीं हो सकता, लेकिन अपने देश के गौरव और उच्च जीवन मूल्यों की स्थापना के लिए कभी-कभी युद्ध अनिवार्य हो जाता है।
कहते हैं कि “अध्यापक राष्ट्रनिर्माता होता है।” गुरु चाणक्य ने यह सिद्ध करके दिखाया। आज मैं भी एक आव्हान कर रही हूँ-
“हे शिक्षकों! उठो! राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दो। तुम्हारे कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। इस देश को तुमसे बहुत आशाएँ हैं। तुम चाहो तो इस देश की तस्वीर और तकदीर बदल सकते हो। उठो!उठो!! उठो!!! देश तुम्हें पुकार रहा है।”