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बापू के नाम एक खत…

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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गांधी जयंती विशेष…………..

बापू! मैं तुमको खत लिखती,
पर पता मुझे मालूम नहीं।
किस गाँव,नगर या शहर लिखूं,
मैं कहां लिखूं ? मालूम नहीं।

बापू! आपके तीनों बंदर,
भूल गए हैं आपकी सीख।
संसद के नेता बन कर,
घूंसे-लातों से करें प्रीत।
गाली-गलौज,तू-तू-मैं-मैं,
झूठ की हो रही है जीत।
सत्य-अहिंसा की लाठी,
कहां गई ? मालूम नहीं।
बापू! मैं तुमको खत लिखती,
पर पता मुझे मालूम नहीं…॥

मोबाइल,कम्प्यूटर हाथों में,
अब चरखा कातेगा कौन ?
खादी इतनी महंगी हो गई,
तुम्हीं बताओ पहनेगा कौन ?
जनता को रोज़गार नहीं है,
देश की बात करेगा कौन ?
शान्ति-सद्भाव हवा हुए हैं,
खो गए कहां ? मालूम नहीं।
बापू! मैं तुमको खत लिखती,
पर पता मुझे मालूम नहीं…॥

दो अक्टूबर जब-जब आए,
तब राष्ट्रपिता की याद दिलाए।
अखबार,स्कूल,राजघाट पर,
श्रद्धा-सुमन चढ़ाएं,हर्षाएं।
दो दिन तक है चहल-पहल,
दो दिन के बाद नहीं हलचल।
नैतिकता बन गई धुंआ,
कहां हुई विलीन ? मालूम नहीं।
बापू! मैं तुमको खत लिखती,
पर पता मुझे मालूम नहीं…॥

हाल देखते अब जो देश का,
शर्म से पानी होते तुम।
घोटालों की उम्र बढ़ गई,
देश का नहीं किसी को गम।
रामराज्य बन गई कल्पना,
धर्म-कर्म,संस्कार न गुण।
त्राहि-त्राहि कर रही धरा,
बापू! मिलोगे कब ? मालूम नहीं।
बापू! मैं तुमको खत लिखती,
पर पता मुझे मालूम नहीं…ll

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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