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सशक्त जो होती है स्त्री

सविता सिंह दास सवि
तेजपुर(असम)

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तोड़ देती है,
क्षमताओं
की सारी सीमाएँ,
अपने पर जब
आती है,
वक्ष में जीवन
कंधों पर ज़िम्मेदारी,
फिर स्त्री,स्त्री नहीं
`वसुधा` बन जाती है।

नकारती है,
जब दुनिया उसको
सवांरती है तब,
शिक्षा उसको
अबला,सबला,
कुछ भी कह लो
अपने मन की जब
करती है,
ठान ले आसमान
को छूना सच मानो,
ये दुनिया हर उस
नारी से डरती हैl

जननी जो खुद है,
कभी-कभी
कोख में ही मार
दी जाती है,
कभी बोझ तो
कभी दहेज भी,
समझी जाती है
पीड़ा-व्यथा,
भुलाकर अपनी
वह सबकी सगी,
बन जाती हैl

समय पड़े तो,
लक्ष्मी,सरस्वती
तो रौद्र में,
दुर्गा,काली
भी बन जाती है
है समाज की धुरी वह,
समर्पण की प्रतिमा है
समझ ना पाए,
संकीर्ण दृष्टि के लोग
ऐसी उसकी महिमा हैl

नारी है तो सृष्टि है,
नारी है तो राग,रंग है
सशक्त जो होती है स्त्री,
सबल सभी को बनाती है
शिक्षा,संस्कार से
नए प्रजन्म को,
राह वही तो
दिखलाती हैll

परिचय-सवितासिंह दास का साहित्यिक उपनाम `सवि` हैl जन्म ६ अगस्त १९७७ को असम स्थित तेज़पुर में हुआ हैl वर्तमान में तेजपुर(जिला-शोणितपुर,असम)में ही बसी हुई हैंl असम प्रदेश की सवि ने स्नातक(दर्शनशास्त्र),बी. एड., स्नातकोत्तर(हिंदी) और डी.एल.एड. की शिक्षा प्राप्त की हैl आपका कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में शिक्षिका का है। लेखन विधा-काव्य है,जबकि हिंदी,अंग्रेज़ी,असमिया और बंगाली भाषा का ज्ञान हैl रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में जारी हैl इनको प्राप्त सम्मान में काव्य रंगोली साहित्य भूषण-२०१८ प्रमुख हैl श्रीमती दास की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार करना है। आपकी रुचि-पढ़ाने, समाजसेवा एवं साहित्य में हैl

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