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दल-बदल का विषाणु

नवेन्दु उन्मेष
राँची (झारखंड)

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‘किफायती लाल’ मेरे शहर के नामी-गिरामी नेताओं में शुमार हैं। वे विधायक से लेकर सांसद तक के ओहदे तक पहुंच चुके हैं। सुबह की सैर के वक्त मुझे मिल गए। हालचाल पूछने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि इन दिनों राजनीति के क्षेत्र में दल-बदल विषाणु हावी है। मुझे लगता है कि वैज्ञानिकों को इस विषाणु की दवा की भी खोज करनी चाहिए। मैं सोचता हूँ कि कहीं यह विषाणु भी कोरोना विषाणु की तरह लाइलाज तो नहीं हैं। मैंने जरा सतर्क होते हुए उनसे पूछा-“इस विषाणु से आम आदमी को कोई खतरा तो नहीं है।”
वे बोले-“आम आदमी को खतरा कैसे नहीं है। इस विषाणु की वजह से देश की राजनीति बदल जाती है। सरकारें बदल जाती है। इसका पूरा असर आमआदमी से लेकर समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।”
उनकी बातों को सुनकर मैं और सतर्क हो गया और दूरियां बनाकर साथ चलने लगा। वे बता रहे थे कि,दल-बदल का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। दल-बदल का विषाणु मुख्य रूप से राजनेताओं को अपना शिकार बनाता है। इसमें सांसद और विधायक से लेकर राजनीतिक दलों के नेता तक शामिल होते हैं। दुनिया में कई तरह के विषाणु होते हैं। इनमें से एक दलबदल का भी
विषाणु शामिल है।”
किफायती लाल ने बताया कि जब किसी विधायक को दलबदल का विषाणु लग जाता है तो उसे गृह संगरोध (होम क्वारंटाइन) के स्थान पर रिजोर्ट संगरोध करना पड़ता है। इसका मुख्य कारण यह है कि इससे अन्य विधायकों के संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति में विधायकों के मोबाइल छीन लिए जाते हैं और अन्य लोगों से उनसे मिलने या बातचीत करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।”
मैंने कहा-“यह काम ठीक उसी तरह से होता है,जैसे किसी मुहल्ले में कोरोना संक्रमित के मिलने पर उसके घर को सील कर दिया जाता है और उसके दरवाजे पर नोटिस चिपका दिया जाता है-‘कोविड-१९ का मरीज।’ नोटिस के नीचे लिखा होता है-“इस घर में आम लोगों का प्रवेश निषेध है।”
वे बोले-“हाँ,इस तरह दल-बदल के संक्रमित मरीज को भी रखा जाता है।”
मैंने कहा-“लेकिन कोविड-१९ के मरीज को घर में रखा जाता है। दल-बदल से संक्रमित मरीज को रिजार्ट में ही क्यों रखा जाता है ?”
वे बोले-“दल-बदल से संक्रमित मरीज कोरोना संक्रमित से ज्यादा खतरनाक होता है। उसका विषाणु कोरोना से भी ज्यादा तेजी से फैलता है। दल-बदल विषाणु से संक्रमित मरीज सरकार बनाने और बिगाड़ने के खेल में ज्यादा सक्रिय रहता है। इसलिए उसे रिजार्ट संगरोध में रखना पड़ता है। कोरोना का मरीज १४-१५ दिनों तक संगरोध में रहने के बाद सही (निगेटिव)हो जाता है लेकिन दल-बदल का संक्रमित मरीज तब तक सक्रिय रहता है,जब तक विधानसभा में विश्वास का प्रस्ताव परित नहीं हो जाता है। यही कारण है कि ऐसे मरीज को तब तक रिजार्ट में रखा जाता है जब तक कि सरकार बन नहीं जाए। सरकार बनते ही दल-बदल के संक्रमण का खतरा कम हो जाता है और मरीज को छोड़कर विषाणु खुद चला जाता है। उसे किसी प्रकार की चिकित्सा की भी जरूरत नहीं पड़ती है,न ही रिजार्ट में उनकी आवभगत में लगे कर्मियों को व्यक्तिगत सुरक्षा किट पहनने की जरूरत पड़ती है।”
मैं चूंकि प्रातःकालीन भ्रमण में उनके साथ चल रहा था,और मुँह पर पट्टी लगाए हुए था। इसलिए सोच रहा था,अच्छा हुआ मैं विधायक नहीं हुआ..इस तरह के विषाणु से अब तक बचा हुआ हूँ। नहीं तो मैं भी उससे ग्रस्त हो सकता था।
वे आगे बोले-“इस तरह के मरीज प्रायः राजनीतिक दलों या विधान सभाओं में पाए जाते हैं।”
इसके बाद हम दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। वे अपनी राह पर चले गए,और मैं अपनी राह पर…।

परिचय-रांची(झारखंड) में निवासरत नवेन्दु उन्मेष पेशे से वरिष्ठ पत्रकार हैंl आप दैनिक अखबार में कार्यरत हैंl

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