बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(रचनाशिल्प:१६-१४ पदांत २२२)
लगे मेंहदी है हाथों में,
साजन के घर जाने को।
खुशियों से आच्छादित आँगन,
स्नेह सुधा बरसाने को॥
मन आह्लादित होता जब-जब,
पिय की याद सताती है।
आँखों में सपनों की माला,
मुझको बहुत रुलाती है॥
पी लेती हूँ आँसू अपने,
खुद को ही बहलाने को,
लगे मेंहदी हैं हाथों में…
सावन की यह मधुरिम बेला,
हिय में आग लगाती है।
कोयल मीठा राग सुनाकर,
पिय संदेशा लाती है॥
मन बगिया में फूल खिले हैं,
कुछ पल में मुरझाने को।
लगे मेंहदी हैं हाथों में…
जीवन में कुछ नहीं चाहिए,
घर साजन का प्यारा हो।
जनम-जनम का साथी मेरा,
दुनिया से भी न्यारा हो॥
माँगू मैं खुशियाँ ईश्वर से,
स्नेह पिया का पाने को।
लगे मेंहदी हैं हाथों में…