कुल पृष्ठ दर्शन : 248

You are currently viewing आशिकी-ए-कयामत

आशिकी-ए-कयामत

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

****************************************************************************

जिंदगी के सफ़र में
सजे ऐसे महफ़िल,
खुशियों की तरंगें
उठे दिल समन्दर,
नज़ाकत मिलन की
ख़ूबसूरत तराने,
गूंजे आशियां में
मुहब्बत के सितारे।

न कोई गम हो,
न जख़्मों-सितम हो
कोई न शिकायत,
न बेवफाई का आलम
न आरजू हो,बिना रव सुहाने,
सजी ऐसी महफ़िल
एक-दूजे बने हम,
हर तरफ़ हो फ़ुहारेंl

मुहब्बत की हो वारिस,
इश्की फ़िजा़ं हो
कशिश की नुमाईश,
चाहत मिलन की,
अहसास दिल का
मिलें गाएँ नगमें,
पहन पीत कलसी
खिलखिलाती-मुस्कुरातीl

वासन्तिक हवा में,
मदमाती-मचलती
इतराती-सकुचाती,
प्रेमी युगल को रिझाती
सजन मिल बलम से,
रतिराग करती विहँसती
अलिगुंज गुंजित,
रसीले सुरीले
बन कुसुमित चमन में,
सारी तमन्ना जिंदगी गुनगुनाएँ
महकें परस्पर हृदय गुदगुदाएँl

जन्मों के हम साथी,
निशिरैन हम दिल
बने हम सितारे,
जीएँ साथ अनुराग
मुहब्बत आशियां में,
जिंदगी की निशा में
प्रिय जुगनू बने हम,
करें नृत्य सुन्दर
चारु संगीत गाएँ,
लूटें-लुटाएँ,हम खुशियाँ मनाएँ
होंठों की लाली सदा मुस्कुराएँl

नित निर्मल हो शाश्वत,
मृदुल भाष अभिलाष
हम सजाएँ गुलफ्सां,
हों रूबरू हम अन्तर्मिलन के
सोपान चाहत चढ़े हम सफ़र म़ें,
सज़ा ज़ाम इश्की नज़ाकत नशीली
करें दिल्लगी हम मुहब्बत शमां में,
चलें राह हमदम मुसाफ़िर बनें हम
बने एक तन-मन जीवन तरंगें,
नायाब तोहफ़े बने हम मुहब्बतl

कुदरत-ए-नूर हम कयामत,
एक श्वांस प्रियतम प्रिया साथ मिल के
गमों में खुशी में सम प्रेमी ढलें हम,
चाहें मुश्किलें हों,या टूटे पहाड़,
करें पार हम मिल सुहाने सफ़र को
बेहतरीन यादें खूबसूरत नज़ाकत,
गढ़े प्यार के आशिकी-ए-कयामतll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply