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आयुर्वेद के अनुसार जनपदोध्वंस से बचाव ही इलाज

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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वर्तमान में जिस `कोरोना` नामक रोग के संक्रमण से पूरा विश्व भयाक्रांत है,और निरंतर जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं,इसके सम्बन्ध में आयुर्वेद में बहुत व्यापक दृष्टि से वर्णन किया है,जो वर्तमान में जानना बहुत जरूरी है-
`तमुवाच भगवानात्रेय —-एवंसमनेवतामप्येभिरगिनवेश ! प्रकृत्यादिभोरवामणुष्याणां येन्ये भावाः सामन्यास्तद्वयगनताय समानकालः समानलिंगाश्च व्याधायोअभिनिवरर्माणा जनपदमुद्धवनश्यन्ति .ते खलिवमे भावाः सामान्या जनपदेषु भवन्तिः तदयायावायुःउदकं देशः,काल इति.
भगवान् आत्रेय का उत्तरl`
भगवान् आत्रेय ने अग्निवेश से कहा कि-हे अग्निवेश! इस प्रकार प्रकृति आदि भावों के भिन्न होते हुए भी मनुष्यों के जो अन्य भाव-सामान्य हैं,उनके विकृत होने से एक ही समय में,एक ही समान लक्षण वाले रोग उत्पन्न कर देते हैं,वे ये भाव जनपद में सामान्य होते हैं-वायु,जल,देश और कालl
#विकृत वायु के लक्षण-
इस प्रकार की वायु को रोग पैदा करने वाली जानना चाहिए,जैसे-ऋतु के विपरीत बहने वाली, अतिनिश्चल,अत्यंत वेग वाली, अत्यंत कर्कश,अतिशीत,अतिउष्ण,अत्यंत रुक्ष,अत्यंत अभिष्यंदी,अत्यंत भयंकर शब्द करने वाली,आपस में टक्कर खाती हुई,अति कुंडली युक्त(अधिक बवंडर युक्त), ,बुरे गंध,वाष्प,बालू,धूलि और धूम से दूषित हुईl
#विकृत जल के लक्षण-
जो अत्यंत विकृत गंध,वर्ण,रस स्पर्श वाला एवं क्लेदयुक्त हो,जिसे छोड़कर जलचर (मगर,मछली आदि) और जलचर पक्षी चले गए हों,जो सूखकर जलाशयों में थोड़ा रह गया हो,जो पीने में स्वादयुक्त न हो,पीने में अप्रिय हो,उसे दूषित अर्थात नष्ट गुणों वाला जल समझना चाहिएl
#विकृत देश के लक्षण-
जिस देश के स्वाभाविक वर्ण,गंध,रस,स्पर्श विकृत हो गए हों,अधिक क्लेदयुक्त,साँप, हिंसक जंतु,मच्छर,टिड्डी,मक्खियां,चूहा,
उल्लू,गिद्ध,सियार,आदि जंतुओं से व्याप्त, तृण,और फ़ूस से युक्त उपवन वाले,विस्तृत लता आदि से युक्त,जैसा पहले कभी नहीं हुआ हो,ऐसे गिरे हुए,सूखे हुए और नष्ट हुए शस्यवाले,धूमयुक्त वायु वाले,लगातार शब्द करते हुए पक्षियों के समूह और जहाँ जोर से कुत्ते चिल्लाते हों,अनेक प्रकार के मृग,पक्षी ,घबराकर और दुखित होकर इधर-उधर दौड़ते हों,छोड़ दिए हैं और नष्ट हो गए हैं धर्म,सत्य,लज्जा,आचार,स्वाभाव और गुण जिनमें ऐसे जनपद वाले,जहाँ के जलाशय क्षुब्ध हों,और उसमें बड़ी लहरें उठती हों, जहाँ लगातार आकाश से उल्कापात होता है, बिजली गिरती हो,भूकम्प होता हो और भयंकर शब्द सुनाई पड़ते हैं,रूखे,ताम्र की तरह अरुण,सफ़ेद,मेघ-जाल से घिरे हुए सूर्य, चन्द्रमा और तारा आदि दिखाई पड़ते हों,बार-बार निरन्तर घबराए हुए भरम के साथ डरे हुए की तरह,रोते हुए की तरह,अंधकार से घिरे हुए की तरह,गद्यक (देवआदिग्रह) द्वारा आक्रांत देश की तरह और रुलाई का शब्द जहाँ अधिक सुनाई पड़ता हो,वह देश दूषित हैं,ऐसा समझना चाहिएl ये लक्षण पूर्व देशों के साथ पश्चिमी देशों में लागु होते हैंl जहाँ खान-पान का ध्यान नहीं रखते,वहां यह होता हैl वर्तमान में हमारे देश में भी मांस,मछली, अंडा और शराब में कमी आयी हैl
#विकृत काल के लक्षण-
ऋतु के स्वाभाविक लक्षणों से विपरीत वाले अधिक लक्षणों,अधिक लक्षणों वाले और कम लक्षणों वाले अस्वाथ्यकर(अहित) जानना चाहिएl
#जनपदोध्वंस के कारण-
इस प्रकार इन चारों भावों का दोषयुक्त होना जनपद को उप्धवंस करने वाला होता हैl इससे विपरीत अर्थात अपने स्वाभाविक लक्षण वाले ये चार-वात,जल,देश और काल-हितकारी होते हैंl
#सामान्य चिकित्सा-
जनपदोध्वंस(एपिडेमिक) पर उचित औषध का प्रयोग किया जाएl इस समय विधिपूर्वक रसायनों का प्रयोग करना चाहिएl सत्य बोलना,जीव मात्र पर दया,दान,सदव्रत का पालन,देवताओं की पूजा,शांति रखना और अपने शरीर की रक्षा करना,कल्याणकारी गाँवों-शहरों का सेवन,धर्मशास्त्र की कथा और महर्षियों की सेवा,सात्विक और वृद्धों द्वारा प्रशंसित पुरुषों के साथ सदा बैठना,इस प्रकार इस भयंकर काल में जिन मनुष्यों का मृत्युकाल अनिश्चित है,यह उनकी आयु की रक्षा करने वाली औषधियां कही गई हैं।
इस महामारी के बचाव के लिए हमें शासन द्वारा जारी निर्देशों के साथ व्यक्तिगत बचाव करना चाहिए। इस रोग में जागरूकता की जरुरत है। वरिष्ठ आयुर्वेद परामर्शदाता होने के कारण सलाह कि,योग्य चिकित्सक के बिना कोई भी इलाज न लें। आजकल बहुत अधिक इलाज देने वाले हैं,कारण कि चिकित्सा हर व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करती है। किसी को प्रतिक्रिया या विपरीत प्रभाव हो जाए,तब क्या करेंगे,या लाभ न हुआ तो कहाँ जाओगे।
ईसा से पूर्व चरक महर्षि ने एपिडेमिक के बारे में विस्तृत वर्णन किया था,जो आज भी उतना ही सार्थक है। इस बीमारी के ख़तम होने का समय बहुत नजदीक है। विगत ७ दिनों में कमी हो जाएगी,पर बचाव ही इलाज़ है। छद्म चिकित्सकों से बचें,और जो मिथ्या प्रचार कर रहे हो उनके खिलाफ पुलिस को सूचना दें। कारण कि,वे एक को बचा सकते हैं,पर सैकड़ों को मार सकते हैं या मार देते हैं, इसलिए योग्य चिकित्सकों से चिकित्सा लेना उचित है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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