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ढाक के तीन पात

डॉ.सोना सिंह 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बहुत पहले सुनी थी एक कहावत,
कहा करते थे दादी और नानी
होते हैं ‘ढाक के तीन पात’,
बाद में पिताजी ने पकड़ ली उनकी बात।
कहते रहते हैं ढाक के तीन ही पात,
हम सब हँसते ताना कसते
उन्हें कहते कुंए का मेंढक,
कहते रहते तुम नहीं समझोगे।
जब आई अपनी बारी,
घूम आए दुनिया सारी
याद आई बात पुरानी,
पिताजी ने पकड़ ली बात।
कहने लगे लौट आए बुद्धु घर के,
हम तो कहते थे सच-
‘ढाक के तीन पात॥’

परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैL संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंL यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।

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