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होली खुशियों को बांटने का अपूर्व अवसर

ललित गर्ग
दिल्ली

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फागुन संग-जीवन रंग (होली)  विशेष…

होली प्रेम,आपसी सद्भाव और मस्ती के रंगों में सराबोर हो जाने का अनूठा त्यौहार है। ‘कोरोना’ महामारी के कारण इस त्यौहार के रंग भले ही फीके पड़े हैं या मेरेे-तेरे की भावना,भागदौड़,स्वार्थ एवं संकीर्णता से होली की परम्परा में बदलाव आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है,फिर भी जिन्दगी जब मस्ती एवं खुशी को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है,तब प्रकृति हमें होली जैसा रंगारंग त्योहार देती है। होली ही एक ऐसा त्योहार है,जिसके लिये मन ही नहीं, माहौल भी तत्पर रहता है। होली का धार्मिक ही नहीं,बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस त्योहार की गौरवमय परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए हम एक सचेतन माहौल बनाएं, जहां हम सब एक हों,और मन की गन्दी परतों को उतार फेंकें,ताकि अविभक्त मन के आईने में प्रतिबिम्बित सभी चेहरे हमें अपने लगें।
होली की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसको मनाते हुए हम समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम,एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। इसको मनाने के पीछे की भावना है मानवीय रिश्तों की गरिमा को समृद्धि प्रदान करना,जीवनमूल्यों की पहचान को नया आयाम प्रदत्त करना। हम कितने भोले हैं कि अपनी संस्कृति एवं आदर्श परम्पराओं को हमीं मिटा रहे हैं। स्वयं अपना घर जला कर स्वयं तमाशा बन रहे हैं। आखिर हमीं तो वे लोग हैं जिन्होंने देश की पवित्र जमीं के नीचे हिंसा,अन्याय, शोषण,आतंक,असुरक्षा,भ्रष्टाचार,अराजकता, अत्याचार जैसे घिनौने तत्वों की गहरी और लम्बी सुरंगें बिछाकर उन पर अपने स्वार्थों का बारूद फैला दिया,बिना कोई परिणाम सोचे,बिना भविष्य की संभावनाओं को देखे। फिर भला कैसे सुरक्षित रह पाएगा आम आदमी का आदर्श,जीवन। इन अंधेरों एवं जटिल हालातों के बीच होली जैसे त्योहार हमारी रोशनी की इंजतार एवं उजालों की कामना को पूरा करने के लिये हमें तत्पर करते हैं।
‘होली’ शब्द अर्थ होता है पवित्रता। पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को काम्य होती है और इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की विरासत का जुड़ाव होता है तो इस पर्व की महत्ता शतगुणित हो जाती है। डफली की धुन एवं डांडिया रास की झंकार में मदमस्त मानसिकता ने होली जैसे त्योहार की उपादेयता को मात्र इसी दायरे तक सीमित कर दिया,जिसे तात्कालिक खुशी कह सकते हैं,जबकि अपेक्षा है कि रंगों की इस परम्परा को दीर्घजीविता प्रदान की जाए। स्नेह और सम्मान का,प्यार और मुहब्बत का, मैत्री और समरसता का ऐसा समां बांधना चाहिए कि जिसकी बिसात पर मानव कुछ नया भी करने को प्रेरित हो सके,आपसी रिश्तों में प्रेम एवं ऊर्जा का संचार करें।
होली दिलों से जुड़ी भावनाओं का पर्व है। यह मन और मस्तिष्क को परिष्कृत करता है। होली प्रेम एवं संवेदनाओं को जीवंतता देने का दुर्लभ अवसर है। यह नफरत को प्यार में बदल देता है।
होली का त्योहार समस्त गिले-शिकवों एवं द्वंद्वों को भूलकर मानवीय रिश्तों में नई ऊर्जा का संचार करने का अवसर है,यह क्षमा देने एवं क्षमा लेने का भी अवसर है,जिन रिश्तों में कड़वाहट आ गई है,उसे क्षमा के जल से अभिस्नात कराने का मौका है। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है।
होली के त्यौहार में विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएँ होती हैं। होलिका का पूर्ण सामग्री सहित विधिवत् पूजन किया जाता है तो अट्टहास, किलकारियों तथा मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसों का नाश हो जाता है। होलिका-दहन से सारे अनिष्ट दूर हो जाते हैं। इस त्योहार को मनाते हुए यूँ लगता है सब कुछ खोकर विभक्त मन अकेला खड़ा है,फिर से सब कुछ पाने की आशा में,क्योंकि इस अवसर पर रंग-गुलाल डालकर अपने इष्ट मित्रों,प्रियजनों को रंगीन माहौल से सराबोर करने की परम्परा है,जो वर्षों से चली आ रही है। एक तरह से देखा जाए तो यह उत्सव प्रसन्नता को मिल-बांटने का एक अपूर्व अवसर होता है,इसलिए होली का त्योहार ‘असत्य पर सत्य की विजय’ और ‘दुराचार पर सदाचार की विजय’ का प्रतीक है। इस प्रकार होली का पर्व सत्य,न्याय,भक्ति और विश्वास की विजय तथा अन्याय,पाप तथा राक्षसी वृत्तियों के विनाश का भी प्रतीक है। अंततः,होली का कोई-न-कोई संकल्प हो और यह संकल्प हो सकता है कि हम स्वयं शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन जीएं और सभी के लिए शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन की कामना करें। ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच होली को सार्थक बना सकता है।

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