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शिल्पाचार्य भगवान विश्वकर्मा

मंजू भारद्वाज
हैदराबाद(तेलंगाना)
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पृथ्वी के निर्माण के संबंध में २ तरह के दर्शन बताए जाते हैं। एक है वैज्ञानिक दर्शन,जिसमें वनमानुष से मनुष्य के विकास का दर्शन और दूसरा है अध्यात्मिक दर्शन। पृथ्वी के निर्माण के समय अनेक प्रकार के देवी-देवता विद्यमान थे। उन्हीं में से भगवान विश्वकर्मा का भी प्रादुर्भाव हुआ,जो पृथ्वी पर शिल्पकला विज्ञान के अधिष्ठाता हुए। उन दिनों पृथ्वी पत्थर और वन प्रदेशों से भरी हुई थी। भगवान विश्वकर्मा ने अपने शिल्प कला विज्ञान के माध्यम से लोहा,लकड़ी,सोना,चाँदी और कांसा धातु का आविष्कार किया,जो पृथ्वी तल में कहीं दबे पड़े थे। भगवान विश्वकर्मा के ५ पुत्र हुए-मनु-लोह कार्य, मय,कास्टकार,त्वष्टा-ताम्रकार,दैवज्ञ-स्वर्णकार तथा शिल्पकार-पत्थर का काम करने वाला। भगवान विश्वकर्मा ने अपने पांचों पुत्रों को इन पंच पदार्थों के अनुसंधान में लगाया और इन सबने उन पंच पदार्थों से पृथ्वी को सजाया और लोगों की आवश्यकताएं पूरी की। बड़े-बड़े महल बनने लगे,बड़े-बड़े मठ- मंदिर बनने लगे व स्वर्ण आभूषण का निर्माण हुआ।अनेक प्रकार के सिहासन का निर्माण हुआ। जलमार्ग और पृथ्वी मार्ग से उड़ने वाले रथों का निर्माण हुआ। पृथ्वी के निर्माण के साथ सभी देवताओं ने पृथ्वी पूजन की आवश्यकता बताई और पृथ्वी पूजन का पुरोहित कौन बन सकता है, इस पर मंथन हुआ। तब सभी देवताओं ने सर्वसम्मति से भगवान विश्वकर्मा को ही पृथ्वी के पूजन का प्रथम पुरोहित बनाया। उन्होंने विधि पूर्वक कुछ समय पृथ्वी का पूजन किया। अपनी अनुभूतियों के आधार पर ईश्वर,अध्यात्म और जीवन के संदर्भ में अनेक ऋचाओं की रचनाएं की, जो हमारे बीच वेद-पुराणों के रूप में प्रचलित हैं। उसी समय ब्रह्म लिपि का आविष्कार हुआ था, जिसमें इन ऋचाओं को संबोधित किया गया। पृथ्वी के पूजन के पश्चात यह आवश्यकता महसूस की गई कि,पृथ्वी की शासन व्यवस्था किसके हाथ में दी जाए ? तब सभी देवताओं ने विश्वकर्मा जी को ही प्रथम शासक मनोनीत किया। उन्होंने अर्थव्यवस्था,सैन्य व्यवस्था,सामाजिक व्यवस्था आदि के लिए अनेक सूत्रों की रचनाएं की,जो आज भी राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र के लिए अनुसूत्र प्रदान करते हैं।
भगवान विश्वकर्मा मूर्ति शिल्प कला विज्ञान के आचार्य थे। अतः उन्हें आचार्य की उपाधि से विभूषित किया गया। उन्होंने अपना राजमुकुट कश्यप मुनि को सौंपकर राजकाज से संन्यास ले लिया। भगवान विश्वकर्मा ने सबल और समर्थ राष्ट्र के लिए सुखी और शांति जीवन के लिए जो सूत्र दिए,वह आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने पहला सूत्र दिया-‘प्रत्येक राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी हो’, क्योंकि स्वावलंबन से ही मनुष्य को सुख-शांति और प्रगति प्राप्त होगी। दूसरा सूत्र दिया-‘प्रत्येक राष्ट्र को सैन्य शक्ति में सामर्थवान होना चाहिए’ ताकि वह अपने राष्ट्र,राष्ट्र की संपत्ति और राष्ट्र की रक्षा कर सके। तीसरा सूत्र दिया-‘सर्व धर्म समभाव का’, जिनकी पूरी दुनिया को जरूरत है। दुनिया में महज मजहब को लेकर हमेशा महायुद्ध होता रहा है। आज भी अमेरिका में काले-गोरे के विवाद में आग भड़क उठती है। हिंदुस्तान में सामुदायिक दंगा हो ही जाता है। धर्म भले ही एक हो,मगर उसकी पूजा पद्धति में मतभेद है,जिसके कारण लोग धर्म के एक मंच पर नहीं आ पाते हैं। आज सड़क पर बैठा हुआ जूते सिलाई करने वाला भगवान विश्वकर्मा की पूजा करता है तो,दर्जी भी मुसलमान होते हुए विश्वकर्मा पूजा के दिन अपनी मशीन की धुलाई-पूजन करता है। बड़ी-बड़ी कंपनियां भी पूजा करती हैं,तो तरह-तरह के वाहन चालक भी बड़े धूमधाम से विश्वकर्मा पूजा करते हैं। विश्वकर्मा पूजा में किसी का धर्म किसी की जाति बाधक नहीं होती,सभी बहुत आदर भाव से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। यह हमारे देश का राष्ट्रीय पर्व है। यह अनेकता में एकता स्थापित करने वाला मानव धर्म है।
आज जल-थल में अनेक प्रकार के मारक हथियार प्रस्तुत किए गए हैं। पृथ्वी पर से लोग चंद्र लोक, मंगल लोक तक चले गए हैं। आज हवा से भी अधिक रफ्तार से चलने वाले वाहनों का निर्माण हुआ है। आज संसार में सुख-शांति के जो माध्यम उपलब्ध हैं,वो सभी भगवान विश्वकर्मा का अविष्कार है,इसीलिए हम विश्वकर्मा पूजा के दिन को राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाएं और स्वावलंबी, स्वाभिमानी तथा सर्वशक्तिमान नव निर्माण में सहायक बनें।

परिचय-मंजू भारद्वाज की जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९६५ व स्थान बिहार है। वर्तमान में आपका बसेरा जिला हैदराबाद(तेलंगाना)में है। हिंदी सहित बंगला,इंग्लिश व भोजपुरी भाषा जानने वाली मंजू भारद्वाज ने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। कार्यक्षेत्र में आप नृत्य कला केन्द्र की संस्थापक हैं,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत कल्याण आश्रम में सेवा देने सहित गरीब बच्चों को शिक्षित करने,सामाजिक कुरीतियों को नृत्य नाटिका के माध्यम से पेश कर जागृति फैलाई है। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,ग़ज़ल,नाटक एवं कहानियां है। प्रकाशन के क्रम में ‘चक्रव्यूह रिश्तों का'(उपन्यास), अनन्या,भारत भूमि(काव्य संग्रह)व ‘जिंदगी से एक मुलाकात'(कहानी संग्रह) आपके खाते में दर्ज है। कुछ पुस्तक प्रकाशन प्रक्रिया में है। कई लेख-कविताएं बहुत से समाचार पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होते रहे हैं। विभिन्न मंचों एवं साहित्यक समूहों से जुड़ी श्रीमती भारद्वाज की रचनाएँ ऑनलाइन भी प्रकाशित होती रहती हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो आपको श्रेष्ठ वक्ता(जमशेदपुर) शील्ड, तुलसीदास जयंती भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान,श्रेष्ठ अभिनेत्री,श्रेष्ठ लेखक,कविता स्पर्धा में तीसरा स्थान,नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम,जमशेदपुर कहानी प्रतियोगिता में प्रथम सहित विविध विषयों पर भाषण प्रतियोगिता में २० बार प्रथम पुरस्कार का सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-देश-समाज में फैली कुरीतियों को लेखनी के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करके दूर करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-दुष्यंत,महादेवी वर्मा, लक्ष्मीनिधि,प्रेमचंद हैं,तो प्रेरणापुंज-पापा लक्ष्मी निधि हैं। आपकी विशेषज्ञता-कला के क्षेत्र में महारत एवं प्रेरणादायक वक्ता होना है। इनके अनुसार जीवन लक्ष्य-साहित्यिक जगत में अपनी पहचान बनाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा साँसों की तरह हममें समाई है। उसके बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। हमारी आन बान शान हिंदी है।’

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