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जागरूकता की जरूरत

रेणू अग्रवाल
हैदराबाद(तेलंगाना)
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ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

जल ही जीवन है,ये तो पूरा संसार जानता है,पर क्या हम अपने पीने के जल स्त्रोतों को संभाले हुए हैं ? जी नहीं,बिल्कुल भी नहीं,दुनिया में तीन हिस्से पानी है और एक हिस्सा ज़मीन का है। पानी की ज़रूरत जीवन के लिए,पेड़-पौधों के लिए, वनस्पतियों को सुरक्षित रखने के लिए,जीव-जंतु और मानव की प्यास बुझाने के लिए,पानी की ज़रूरत तो ख़त्म हो ही नहीं सकती।
पानी जीवन के हर काम में शामिल है। बेटा या बेटी जन्म लेने के बाद,चूड़ा संस्कार में कुआँ पूजने की प्रथा आज भी है। अपने देश में कुंभ स्नान, सिंहस्थ स्नान,कार्तिक स्नान,माघ स्नान,वैशाख स्नान सभी तो बहते स्वच्छ नदियों के जल से ही होते हैं।
रावण से युद्ध में जाने के पहले श्री राम ने जल से विभीषण को तिलक कर के लंका का भावी राजा घोषित कर दिया था। किसी भी पूजा,व्रत,यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता है तो जल से ही संकल्प छोड़ा जाता है।
पानी बोतलों में बिक़ते हुए शायद २० साल तो हो चुके होंगे। इंसान इतना हैवान बन चुका है कि उसका वश चले तो क़ुदरत की हर नेमत को बेच- बेच रुपया वसूल करता रहे।
प्राण वायु भी बिकती है,इंसान के शरीर के अंगों का व्यापार भी खुलेआम होता है। अंग प्रत्यारोपण के बाद भी मैंने तो किसी की जान बचते हुए नहीं देखी,यानी वही ढाक के तीन पात।
जल ही जीवन है,इसके हजारों उदाहरण मिल जाएंगे,पर इंसान में इंसानियत है ऐसा कम ही देखने को मिलता है।
जहाँ पेड़ होंगे,वहीं बादल बरसेंगे,पर प्रकृति का असंतुलन भी मानव ही कर रहा है। बात वहीं आकर रुक जाती है पर्यावरण पर ? जल जीवन है इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता।
पहले हर दुकान की राह पर लोग प्याऊ लगवाते थे उसमें नल के जरिए मटकों का शीतल और मीठा पानी जिनको भी प्यास लगती,बेफ़िक्र हो पी लेता था,जब पानी भी बिकने लगा तो अब प्याऊ तो कहीं भी नज़र नहीं आती।
प्यास तो पंछी,जीव-जंतु,जानवर सबको लगती है। हम छत पर,बालकनी में जहाँ भी पंछी आने की संभावना दिखती है,मिट्टी के चौड़े से बर्तन में पानी भरकर रखते हैं,ताकि कोई बेजुबान प्यासा न मर जाए।
दुनिया में पीने योग्य पानी की कमी नहीं है,बस लालची मानव ने उसे भी बोतलों में बंद करके,पानी की कमी का एहसास कराया है। आज भी कई नदियाँ लबालब स्वच्छ पानी लेकर निरंतर सदियों से बह रहीं है,क्या वो पानी पीने लायक़ नहीं है। जी वो पानी एकदम स्वच्छ निर्मल और शीतल है,बस जो नदियाँ शहरों को छूकर बहती है,उस पानी को लोगों ने प्रदूषित कर रखा है।
शवों को फ़ेंकना,कारखानों का ज़हरीला मल युक्त पानी-नालों का नदियों में छोड़ा जाना,शहर के गंदे मल मूत्र के नालों को भी नदियों,समन्दरों में निरंतर छोड़ते ही रहने से पीने के पानी की समस्या नज़र आती है।
बस हर मानव मात्र को जागरूकता की ज़रूरत है कि,सभी मिलकर अपनी ज़िंदगी के लिए पानी को बचा सकें और आगे आने वाली पीढ़ी को पीने योग्य जल दे सकें।

परिचय-रेणू अग्रवाल की जन्म तारीख ८ अक्टूबर १९६३ तथा जन्म स्थान-हैदराबाद है। रेणू अग्रवाल का निवास वर्तमान में हैदराबाद(तेलंगाना)में है। इनका स्थाई पता भी यही है। तेलंगाना राज्य की वासी रेणू जी की शिक्षा-इंटर है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज में शाखा की अध्यक्ष रही हैं। लेखन विधा-काव्य(कविता,गीत,ग़ज़ल आदि) है। आपको हिंदी,तेलुगु एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान है। प्रकाशन के नाम पर काव्य संग्रह-सिसकते एहसास(२००९) और लफ़्ज़ों में ज़िन्दगी(२०१६)है। रचनाओं का प्रकाशन कई पत्र-पत्रिकाओं में ज़ारी है। आपको प्राप्त सम्मान में सर्वश्रेष्ठ कवियित्री,स्मृति चिन्ह,१२ सम्मान-पत्र और लघु कथा में प्रथम सम्मान-पत्र है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-गुरुजी से उज्जैन में सम्मान,कवि सम्मेलन करना और स्वागत कर आशीर्वाद मिलना है। रेणू जी की लेखनी का उद्देश्य-कोई रचना पढ़कर अपने ग़म दो मिनट के लिये भी भूल जाए और उसके चेहरे पर मुस्कान लाना है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-हर हाल में खुशी है। विशेषज्ञता-सफ़ल माँ और कवियित्री होना है,जबकि रुचि-सबसे अधिक बस लिखना एवं पुरानी फिल्में देखना है।

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